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________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१६/१७० २०१ राजाओं के आवासों में ले जाओ ।' यह सुनकर वे, सब वस्तुएँ ले गये । तब वासुदेव आदि राजा उस विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम यावत् प्रसन्ना का पुनः पुनः आस्वादन करते हए क्चिरने लगे । भोजन करने के पश्चात् आचमन करके यावत् सुखद आसनों पर आसीन होकर बहुत-से गंधों से संगीत कराते हुए विचरने लगे । तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने पूर्वापराल काल के समय कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और कांपिल्यपुर नगर के श्रृंगाटक आदि मार्गों में तथा वासुदेव आदि हजारों राजाओं के आवासों में, हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर बुलंद आवाज से यावत् बार-बार उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहो–'देवानुप्रियो ! कल प्रभात काल में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा और धृष्टद्युम्न की भगिनी द्रौपदी राजवरकन्या का स्वयंवर होगा । अतएव हे देवानुप्रियो । आप सब द्रुपद राजा पर अनुग्रह करते हुए, स्नान करके यावत् विभूषित होकर, हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर, कोरंट वृक्ष की पुष्पमाला सहित छत्र को धारण करके, उत्तम श्वेत चामरों से बिजाते हुए, घोड़ों, हाथियों, स्थों तथा बड़े-बडे सुभटों के समूह से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिखत होकर जहाँ स्वयंवर मंडप है, वहाँ पहँचें। अलग-अलग अपने नामांकित आसनों पर बैठे और राजवरकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करें ।' इस प्रकार की घोषणा करो और मेरी आज्ञा वापिस करो ।' तब वे कौटुम्बिक पुरुष इस प्रकार घोषणा करके यावत् राजा द्रुपद की आज्ञा वापिस करते हैं । तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को पुनः बुलाकर कहा-'देवानुप्रियो ! तुम स्वयंवर-मंडप में जाओ और उसमें जल का छिड़काव करो, उसे झाड़ो, लीपो और श्रेष्ठ सुगंधित द्रव्यों से सुगंधित करो । पाँच वर्ण के फूलों के समूह से व्याप्त करो । कृष्ण अगर, श्रेष्ठ कुंदुरुक्क और तुरुष्क आदि की धूप से गंध की वर्ती जैसा कर दो । उसे मंचों और उनके ऊपर मंचों से युक्त करो । फिर वासुदेव आदि हजारों राजाओं के नामों से अंकित अलग-अलग आसन श्वेत वस्त्र से आच्छादित करके तैयार करो । यह सब करके मेरी आज्ञा वापिस लौटाओ ।' वे कौटुम्बिक पुरुष भी सब कार्य करके यावत् आज्ञा लौटाते हैं । तत्पश्चात् वासुदेव प्रभृति अनेक हजार राजा कल प्रभात होने पर स्नान करके यावत विभूषित हुए । श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुए । उन्होंने कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को धारण किया । उन पर चामर ढोरे जाने लगे । अश्व, हाथी, भटों आदि से परिवृत होकर सम्पूर्ण कृद्धि के साथ यावत् वाद्यध्वनि के साथ जिधर स्वयंवरमंडप था, उधर पहुँचे । मंडप में प्रविष्ट होकर पृथक्-पृथक् अपने-अपने नामों से अंकित आसनों पर बैठ गये राजवरकन्या द्रौपदी की प्रतीक्षा करने लगे । द्रुपद राजा प्रभात में स्नान करके यावत् विभूषित होकर, हाथी के स्कंध पर सवार होकर, कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र को धारण करके, अश्वों, गजों, रथों और उत्तम योद्धाओं वाली चतुरंगिणी सेना के साथ तथा अन्य भटों एवं रथों से परिवृत होकर कांपिल्यपुर से बाहर निकला । जहाँ स्वयंवरमंडप था, वासुदेव आदि बहुत-से हजारों राजा थे, वहाँ आकर वासुदेव वगैरह का हाथ जोड़कर अभिनन्दन किया और कृष्ण वासुदेव पर श्रेष्ठ श्वेत चामर ढोरने लगा ।। [१७१] उधर वह राजवरकन्या द्रौपदी प्रभात काल होने पर स्नानगृह की ओर गई । वहाँ जाकर स्नानगृह में प्रविष्ट होकर उसने स्नान किया यावत् शुद्ध और सभा में प्रवेश करने
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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