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________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१६/१६९ १९९ वासुदेव को, समुद्रविजय आदि दस दसारों को यावत् महासेन आदि छप्पन हजार बलवान् वर्ग को दोनों हाथ जोड़कर द्रुपद राजा के कथनानुसार अभिनन्दन करके यावत् स्वयंवर में पधारने का निमंत्रण दिया । । तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव उस दूत से यह वृत्तान्त सुनकर और समझकर प्रसन्न हुए, यावत् वे हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए । उन्होंने उस दूत का सत्कार किया, सम्मान किया । पश्चात् उसे विदा किया । तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिकं पुरुष को बुलाया । उससे कहा'देवानुप्रिय ! जाओ और सुधर्मा सभा में रखी हुई सामुदानिक भेरी बजाओ ।' तब उस कौटुम्बिक पुरुष ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके कृष्ण वासुदेव के इस अर्थ को अंगीकार किया । जहाँ सुधर्मा सभा में सामुदानिक भेरी थी, वहाँ आकर जोर-जोर के शब्द से उसे ताड़न किया । तत्पश्चात् उस सामुदानिक भेरी के ताड़न करने पर समुद्रविजय आदि दस दसार यावत् महासेन आदि छप्पन हजार बलवान् नहा-धोकर यावत् विभूषित होकर अपनेअपने वैभव के अनुसार ऋद्धि एवं सत्कार के अनुसार कोई-कोई यावत् कोई-कोई पैदल चल कर जहाँ कृष्ण वासुदेव थे, वहाँ पहुँचे । दोनों हाथ जोड़कर सब ने कृष्ण वासुदेव का जयविजय के शब्दों से अभिनन्दन किया । तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही पट्टाभिषेक किये हुए हस्तीरत्न को तैयार करो तथा घोड़ों हाथियों यावत् यह आज्ञा सुन कर कौटुम्बिक पुरुषों ने तदनुसार कार्य करके आज्ञा वापिस सौंपी । तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव मज्जनगृह में गये । मोतियों के गुच्छों से मनोहर-यावत् अंजनगिरि के शिखर के समान गजपति पर वे नरपति आरूढ़ हुए । तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव समुद्रविजय आदि दस दसारों के साथ यावत् अनंगसेना आदि कई हजार गणिकाओं के साथ परिवृत होकर, पूरे ठाठ के साथ यावत् वाद्यों की ध्वनि के साथ द्वारवती नगरी के मध्य में होकर निकले । सुराष्ट्र जनपद के मध्य में होकर देश की सीमा पर पहुँचे । पंचाल जनपद के मध्य में होकर जिस ओर कांपिल्यपुर नगर था, उसी ओर जाने के लिए उद्यत हुए । _ [१७०] तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने दूसरे दूत को बुलाकर उससे कहा-'देवानुप्रिय ! तुम हस्तिनापुर नगर जाओ । वहाँ तुम पुत्रों सहित पाण्डु राजा को उनके पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को, सौ भाइयों समेत दुर्योधन को, गांगेय, विदुर, द्रोण, जयद्रथ, शकुनि, कर्ण और अश्वत्थामा को दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि करके उसी प्रकार कहना, यावत्-समय पर स्वयंवर में पधारिए । तत्पश्चात् दूत ने हस्तिनापुर जाकर प्रथम दूत के समान श्रीकृष्ण को कहा था । तब जैसा कृष्ण वासुदेव ने किया, वैसा ही पाण्डु राजा ने किया । विशेषता यह है कि हस्तिनापुर में भेरी नहीं थी । यावत् कांपिल्यपुर नगर की ओर गमन करने को उद्यत हुए । इसी क्रम से तीसरे दूत को चम्पा नगरी भेजा और उससे कहातुम वहाँ जाकर अंगराज कृष्ण को, सेल्लक राजा को और नंदिराज को दोनों हाथ जोड़कर यावत् कहना कि स्वयंवर में पधारिए । चौथा दूत शुक्तिमती नगरी भेजा और उसे आदेश दिया तुम दमघोष के पुत्र और पाँच सौ भाइयों से परिवृत शिशुपाल राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारिए । पाँचवाँ दूत हस्तीशीर्ष नगर भेजा और कहा-तुम दमदंत राजा को हाथ जोड़कर उसी
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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