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________________ २०० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वशीत, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होते हैं, इनके भी चार भंग । अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वउष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष इसके भी पूर्ववत् चार भंग । इस प्रकार कर्कश के साथ सोलह भंग होते हैं । अथवा सर्वमृदु सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है, इस के भी पूर्ववत् चार भंग होते हैं । अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वस्निग्ध, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण के भी १६ भंग होते हैं । अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वरूक्ष, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण के १६ भंग; दोनों मिला कर बत्तीस भंग होते हैं । इस प्रकार पांच स्पर्श वाले १२८ भंग हुए । यदि छह स्पर्श वाला होता है, तो सर्वकर्कश, सर्वगुरु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है; कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष; इस प्रकार यावत् सर्वकर्कश, सर्वलघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष; इस प्रकार सोलहवें भंग तक कहना । ये १६ भंग हुए । कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; यहाँ भी सोलह भंग होते हैं । कदाचित् सर्वमृदु, सर्वगुरु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, यहाँ भी सोलह भंग होते हैं । कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेस रूक्ष, कुल सोलह भंग होते हैं । ये सब मिल कर ६४ भंग होते हैं । अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वशीत, एकदेशगुरु, एकदेशलघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है; इस प्रकार यावत् सर्वमृदु सर्वउष्ण, अनेकदेश लघु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं; यह चौसठवाँ भंग है । अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वस्निग्ध, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण होता है; यावत् कदाचित् सर्वमृदु, सर्वरूक्ष, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, अनेकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण होता है । यह चौसठवाँ भंग है । कदाचित् सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश उष्ण होता है, इस प्रकार यावत् सर्वलघु, सर्वउष्ण, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं; यह चौसठवाँ भंग है । कदाचित् सर्वगुरु, सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण होता है; यावत् कदाचित् सर्वलघु, सर्वरूक्ष अनकेदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश शीत और अनेक देश उष्ण होते हैं; यह चौसठवाँ भंग है । कदाचित् सर्वशीत, सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु और एकदेश लघु होता है; यावत् कदाचित् सर्वउष्ण, सर्वरूक्ष, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनकेदेश, गुरु, अनेकदेश लघु होता है । यह चौसठवाँ भंग है । षट्स्पर्श के ३८४ भंग होते हैं । यदि वह सात स्पर्श वाला होता है तो कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश, शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है । कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश गीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं, कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है, इत्यादि चार भंग । कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इत्यादि
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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