SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-२०/-/५/७८७ २०१ चार भंग तथा कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष इत्यादि चार भंग; ये सब मिलाकार १६ भंग हैं । अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है । इस प्रकार 'गुरु' पद को एकवचन में और 'लघु' पद को अनेक वचन में रखकर पूर्ववत् यहाँ भी सोलह भंग कहने चाहिये । अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, अनेकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध एवं एकदेश रूक्ष, इत्यादि, ये भी सोलह भंग कहने चाहिये। अथवा कदाचित सर्वकर्कश, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, ये सब मिलकर सोलह भंग कहने चाहिये । ___अथवा कदाचित् सर्वमृदु, एकदेश गुरु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध, और एकदेश रूक्ष होता है । रूक्ष की तरह 'मृदु' शब्द के साथ भी पूर्ववत् ६४ भंग । अथवा कदाचित् सर्वगुरु, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध, और एकदेश रूक्ष, इस प्रकार के 'गुरु' के साथ भी पूर्ववत् ६४ भंग । अथवा कदाचित् सर्वलघु, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध, एकदेश रूक्ष; इस प्रकार 'लघु' के साथ भी पूर्ववत् ६४ भंग | कदाचित् सर्वशीत, एकदेश कर्कश, एकदेश मूदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इस प्रकार 'शीत' के साथ भी ६४ भंग । कदाचित् सर्वउष्ण, एकदेश कर्कश, एकदेश मद, एकदेश गुरु, एकदेश लघ, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष: इस प्रकार 'उष्ण' के साथ भी ६४ भंग । कदाचित् सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण होता है; इस प्रकार 'स्निग्ध' के साथ भी ६४ भंग । कदाचित् सर्वरूक्ष, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण; इस प्रकार 'रूक्ष' के साथ भी ६४ भंग । यावत् सर्वरूक्ष, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, अनेकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण होता है । इस प्रकार ये ५१२ भंग सप्तस्पर्शी के हैं । यदि वह आठ स्पर्शवाला होता है, तो कदाचित् एक्रदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है । कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण तथा एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इत्यादि चार भंग कहने चाहिये । कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इत्यादि चार भंग । कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, अनेकददेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, ये चार भंग । इस प्रकार १६ भंग होते हैं । अथवा कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इस प्रकार 'गुरु' पद को एकवचन में और 'लघु' पद को बहुवचन में रखकर पूर्ववत् १६ भंग है । कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इसके भी १६ भंग हैं । कदाचित्
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy