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________________ भगवती - २०/-/५/७८६ १९९ एकदेश नीला, एकदेश लाल, एकदेश पीला और अनेकदेश श्वेत होता है । इस प्रकार कदाचित् अनेकदेश काला, अनेकदेश नीला, अनेकदेश लाल, अनेकदेश पीला और एकदेश श्वेत होता है, यहाँ तक इकतीस भंग कहना । यों वर्ण की अपेक्षा - सब मिलाकर २३६ भंग होते हैं । गन्ध- विषयक ६ भंग अष्टप्रदेशी के समान होते हैं । रस-विषयक २३६ भंग कहना । स्पर्श के ३६ भंग चतुः प्रदेशी के समान समझना । भगवन् ! दशप्रदेशी स्कन्ध संबंधि प्रश्न ? गौतम ! नव-प्रदेशिक स्कन्ध के समान कहना । यदि एकवर्णादि वाला हो तो नव-प्रदेशिक स्कन्ध के एक वर्ण, दो वर्ण, तीन वर्ण और चार वर्ण के समान । यदि वह पांच वर्ण वाला हो तो नवप्रदेशी के समान समझना । विशेष यह है कि यहाँ अनेकदेश काला, अनेकदेश नीला, अनेकदेश पीला और अनेकप्रदेश श्वेत होता है । यह बत्तीसवाँ भंग अधिक कहना । इस प्रकार वर्ण के २३७ भंग होते हैं । गन्ध के ६ भंग नवप्रदेशी के समान । रस के २३७ भंग वर्ण के समान हैं । स्पर्शसम्बन्धी ३६ भंग चतुप्रदेशी के समान हैं । दशप्रदेशी स्कन्ध के समान संख्यातप्रदेशी स्कन्ध (के) भी (वर्णादि सम्बन्धी भंग कहने चाहिए 1) इसी प्रकार असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी समझना चाहिए । सूक्ष्मपरिणाम वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी इसी प्रकार भंग कहने चाहिए । [७८७] भगवन् ! बादर - परिणाम वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण वाला होता है, गौतम ! अठारहवें शतक के छठे उद्देशक के समान 'कदाचित् आठ स्पर्श वाला कहा गया है', तक जानना । अनन्तप्रदेशी बादर परिणामी स्कन्ध के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के भंग, दश प्रदेशी स्कन्ध के समान कहने । यदि वह चार स्पर्श वाला होता है, तो कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत और सर्वस्निग्ध होता है, कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत और सर्वरूक्ष होता है, कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वउष्ण और सर्वस्निग्ध होता है, कदाचित् सर्वगुरु, सर्वउष्ण और सर्वरूक्ष होता है । कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वशीत और सर्वस्निग्ध होता है । कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वशीत, और सर्वरूक्ष होता है । कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वउष्ण और सर्वस्निग्ध होता है । कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वलघु, सर्वउष्ण और सर्वरूक्ष होता है । कदाचित् सर्वमृदु, सर्वगुरु, सर्वशीत और सर्वस्निग्ध होता है । कदाचि सर्वमृदु, सर्वगुरु, सर्वभीत और सर्वरूक्ष होता है । कदाचित् सर्वमृदु, सर्वगुरु, सर्वउष्ण और सर्वस्निग्ध होता है । कदाचित् सर्वमृदु, सर्वगुरु, सर्वउष्ण और सर्वरूक्ष होता है । कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, सर्वशीत और सर्वस्निग्ध होता है । कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, सर्वशीत और सर्वरूक्ष होता है । कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, सर्वउष्ण और सर्वस्निग्ध होता है । कदाचित् सर्वमृदु, सर्वलघु, सर्वउष्ण और सर्वरूक्ष होता है । इस प्रकार सोलह भंग हैं । यदि पांच स्पर्श वाला होता है, तो सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है । अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश स्निग्ध और अनेददेश रूक्ष होता है । अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होता है । अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत, अनेकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है । अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होता है । अथवा सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वउष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है, इनके चार भंग ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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