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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुत्तं- ३१७ ओवम्मसंखा से किं तं परिमाणसंखा परिमाणसंखा दुविहा पत्रत्ता तं जहा कालियसुयपरिमाणसंखा दिडिवायसुयपरिमाणसंखा य से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा अणेगविहा पत्ता तं जहा - पशुवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेदसंखा निजुत्तिसंखा अनुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा से तं कालियसुपरिमाणसंखा से किं तं दिडिवायसुयपरिमाणसंखा अनेगविहा पत्रत्ता तं जहा-पजयसंखा जाव अनुओगदारसंखा पाहुडसंखा पाहुडियासंखा पाहुडपाहुडियासंखा बत्संखा से तं दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा से तं परिमाणसंखा से किं तं जाणणासंखा जाणणासंखा जो जं जाणइ तं जहा -संह सहिओ गणियं गणियओ निमित्तं नेमित्तिओ कालं कालनाणी वेजयं वेजो से तं जाणणासंखा से किं तं गणणासंखा गणणासंखा एक्को गणणं न उदेइ दुष्पभिइ संखा तं जहासंखेज असंखेलए अनंतए से किं तं संखेजए संखेजए तिविहे पत्रत्ते तं जहा जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक कोसए से किं तं असंखेज्जए असंखेज्जए तिविहे पत्रत्ते तं जहा परित्तासंखेज्जए जुत्तासंखेज्जए असंखेज्जासंखेज्जए से किं तं परितासंखेज्जए परित्तासंखेज्जए तिविहे पञ्चत्ते तं जहाजहण्णए उक्कोसेए अजहण्णमणुक्कोसए से किं तं जुत्तासंखेज्जए जुत्तासंखेज्जए तिविहे पत्रत्ते तं जहा- जहण्णए उक्कोसए अजहग्ममरणुक्कोसए से किं तं असंखेज्जासंखेज्जए असंखेज्जासंखेज्जए तिविहे पत्ते तं जहा जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए से किं तं अनंतए अनंतए तिविहे पत्ते तं जहा - परिताणंतर जुत्ताणंतए अनंताणंतए से किं तं परित्ताणंतए परित्ताणंतए तिविहे पत्र ते तं जहा जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्को सए से किं तं जुत्ताणंतर जुत्ताणंतए तिविहे पत्ते तं जहा जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए से किं तं अनंताणंतए अनंतात दुविहे पत्ते तं जहा जहण्णए अजहण्णमणुक्कोसए जहण्णयं संखेज्जयं केत्तियं होइ दोरूबाई तेणं परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं संखेज्जयं न पावइ उक्कोसयं संखेजयं केत्तियं होइ उक्कोसयस्स संखेज्जयस्स परूवणं करिस्तामिः से जहानामए पल्ले सिया एवं जोयणायसहस्सं आयाम - विक्खंभेणं तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुस तेरस य अंगुलाई अर्द्ध अंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पत्रत्ते से णं पल्ले सिद्धत्ययाणं भरिए तओ णं तेहि सिद्धत्यएहिं दीव-समुद्दाणं उद्धारो घेप्पइ एगे दीवे एगे समुद्दे - एगे दीवे एगे समुद्दे एवं पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं जावइया दीव-समुद्दा तेहिं सिद्धत्वएहिं अष्फुण्णा एस णं एवइए खेत्ते पल्ले पढपा सलागा एवझ्याणं सलागाणं असंलप्पा लोगा भरिया तहा वि उक्कोसयं संखेज्जयं न पावइ जहा को दिट्टंतोसे जहानामए मंचे सिया आमलगाणं भरिए तत्थ एगे आमलए पक्खित्ते से माते अण्णेवि पक्खित्ते से वि माते अण्णे वि पक्खित्ते से वि माते एवं पक्खिप्पमाणेहिंपक्खिप्पमाणेहिं होही से आमलए जम्मि पक्खित्ते से मंधे भरिजिहि होही से आमलए जे तत्व न माहिइ एवामेव उक्कोसए संखेजए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं परित्तासंखेजयं भवइ तेणं परं अजहण्णमणुककोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं न पावइ उक्कोसयं परित्तासंखेजयं केतिय होइ जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं जहण्णय- परित्तासंखेजयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णमासी रूणो उक्कोसयं परित्तासंखेजयं होइ अहवा जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं रूचूर्ण उक्कोसयं परित्तासंखेजयं होइ जहण्णवं जुत्तासंखेज्जयं केत्तियं होइ जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं जहण्णयपरित्ता-संखेज्जयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णमासी पडिपुत्रो जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं होइ For Private And Personal Use Only
SR No.009775
Book TitleAgam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size2 MB
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