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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनुमोगदाराई - (३७) अहया उक्कोसए परित्तासंखेजएवं पक्खित्तं जहण्णय जुत्तासंखेञ्जय होइ आवलिया वि तत्तिया चेव तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाईजाव उनकोसयं जुत्तासंखेजयंन पावइ उक्कोसयं जुत्तासंखेजय केत्तियं होइ जहण्णएणं जुतासंखेज्जएणं आवलिया गुणिया अण्णमण्णव्यासो स्पूणो उक्कोसयं जुत्तासंखेजय होइ अहवा जहण्णय असंखेज्जासंखेजयं रूवूर्ण उक्कोसयं जुत्तासंखेजय होइ जहण्णयं असंखेशासंखेज्जयं केत्तियं होइ जहण्णएणंजुत्तासंखेञ्जएणं आवलिया गुणिया अण्णमण्णाभासो पडिपुत्रो जहण्णयं असंखेनासंखेज्जयं होइ अहवा उक्कोसए जुत्तासंखेजए रूवं पक्खित्तं जहण्णय असंखेनासंखेजय होइ तेणं परं अजहण्णमणुककोसयाई ठाणाइं जावं उक्कोसयं असंखेज्जासंखेजयं न पावइ उक्कोसयं असंखेनासंखेनयं केत्तियं होइ जहण्णय असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णय-असंखेनासंखेजयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णमासो रूपूणो उकोसयं असंखेना-संखेजयं होइ अहवा जहण्णयं परित्ताणतयं रूवूणं उक्कोसयं असंखेजासंखेज्जयं होइ जहण्णयं परित्ताणतयं केत्तियं होइ जहण्णयं असंखेज्जासंखेजयं जहण्णयअसंखेज्ञासंखेजमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णासो पडिपुत्रो जहण्णयं परित्ताणतयं होइ अहवा उक्कोसए असंखेज्जासंखजए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं परित्ताणतयं होइ तेण परं अजहण्णमणुककोसयाई ठाणाईजाय उनकोसयं परित्ताणंतरयं न पावइ उककोसयं परिताणतयं केत्तियं होइ जहण्णयं परित्ताणतयं जहण्णयपरित्ताणतयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्मासो रूचूणो उकोसयं परित्ताणतयं होइ अहवा जहण्णयं जुत्ताणतयं रूदूणं उकूकोसयं परित्ताणतयं होइ जहण्णयं जुत्ताणतयं केत्तियं होइ जहण्णयं परित्ताणतयं जहणायपरित्ताणतय-मेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो पडिपुत्रो जहण्णय जुत्ताणतय होइ अहया उक्कोसए परित्ताणतए स्वंपक्खित्तं जहण्णवं जुत्ताणतयं होइ-अभवसिद्धिया वि तत्तिया चेव तेणं परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाब उक्कोसयं जुत्ताणतयं न पावइ उक्कोसयं जुताणतयं केत्तिय होइ जहपणएण जुताणतएणं अभयसिद्धिया गुणिया अण्णमण्णडभासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्तार्णतयं होइ अहवा जहण्णय अनंताणतयं रूपूर्ण उक्कोसयं जुत्ताणतयं होइ जहण्णयं अनंताणतयं केत्तियं होइ जहण्णय जुत्ताणंतएणं अभवसिद्धिया गुणिया अण्णमपणमासो पडिपुत्रो जहण्णयं अनंताणतयं होइ अहदा उक्कोसए जुत्ताणतए रूवं पस्तित्तं जहण्णयं अनंताणतयं होइ तेणं परं अजहण्णपणुक्कोसयाई ठाणाइं से तं गणणासंखा से किं तं मावसंखा भावसंखा-जे इमे जीवा संखगइनामगोत्ताईकम्माइंवेदेति से तं भावसंखा से तं संखप्पमाणे से तं मादप्पमाणे से तं पमाणे।१४६। {३१4) से किं तं वत्तब्वया यत्तव्यया तिविहा पनत्ता तं जहा-ससमयवत्तव्यया परसमयवत्तव्यया ससमय-परसमयवत्तव्बया से किं तं ससमयवत्तव्वया ससमयवत्तब्वया-जत्य णं ससमए आधविजइ पन्नविजइ परूयिझइ दंसिजइ निदंसिज्जइ उवदंसिज़ा से तं ससमयवत्तव्यया से किं तं परसमयवत्तव्बया परसमयवत्तव्वया-जत्य णं परसमए आयविनइ पन्नविजइ परूविजय देसिजइ निर्देसिज्जइ उवदंसिल से तं परसमयवत्तव्यया से किं तं ससमय-परसमययत्तव्यया ससमय-परसमयवत्तव्यया-जत्थ ससमए परसमए आधविज्जइ पत्रविजइ परूविजइ दंसिज्जइ निदंसिअइ उवदंसिजइसे तं ससमय-परसमयवत्तव्वया इयाणि को नओ कं वत्तव्ययं इचअछह तत्य नेगम-चवहारा तिविहं वतव्ययं इच्छति तं जहा-ससमयवत्तव्ययं परसपयवत्तब्वयं ससमयपरसमयवत्तव्वयं उअसुओ दुविहं वतव्वयं इच्छइ तं जहा-ससमयवत्तव्वयं परसपयवत्तव्वयं तत्थ For Private And Personal Use Only
SR No.009775
Book TitleAgam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size2 MB
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