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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11८७187 ॥८९/88 सतं (२४२) हत्यो चित्ता साती विसाठा तह य होइ अनुराहा जेट्ठा मूलो पुव्यासादा तह उत्तरा व (२३) अमिई सवण धणिहा सतभिसया दो यहोति भद्दवया रेवति अस्सिणि परणि एसानक्खत्तपरिवाडी 11८1-88 (२४) से तं नक्खत्तनामे से किं तं देवयानामे देवयानामे अग्गिदेवयाहिं जाए-अग्गिए अग्गिदिण्णे अग्गिधम्मे अग्गिसम्मे अग्निदेवे अग्गिदासे अग्गिसेणे अग्गिरक्खिए एवं सव्वनक्खत्तदेवयानामा माणियव्या [एत्यं पि संगहणिगाहाओ] १३०--1304 (२४५) अग्गि पयावइ सोमे रुद्दे अदिती बहस्सई सप्पे पिति भग असम सविया तडा वाऊय इंदग्गी (ar) पित्तो इंदो निरती आऊदिस्सोयबंमविण्हय वसुवरुण अय विवद्धी पुस्से आसे जमे चेव ॥९०11-20 (२४७) से तं देवयनामे, से किं ते कुलनामे कुलनामे-उग्गे भोगे राइण्णे खत्तिए इक्खागे नाते कोरव्ये से तंकुलनामे से किंतंपासंडनामे, समणे पंडरंगे भिक्खू कावालिए तावसे परिवायगे से तं पासंडनामे से किं तं गणनामे, मल्ले मल्लदिपणे मालधमे मल्लसम्म मल्लदेवे मल्लदासे मल्लसेणे मल्लरखिए से तं गणनामे से किं तंजीवियानामे अवकरए उकुरुडए उझिये कजवए सुप्पए से तंजीवियानामे से किं तं आभियाइयनामे अंबए निबंए बबूलए पलासए सिणए पीलुए करीरए से तं आभिप्पाइयनामे से तं ठयणप्पमाणे से किं तं दव्वप्पमाणे पव्वपमाणे छबिहे पन्नत्ते तं जहाधपस्थिकाए जाच अद्धासमए से तं ददेवप्पमाणे सेकिं तं मावप्पमाणे भावप्पमाणे चउबिहे पन्नत्ते तंजहा-सामासिए तद्धितए घाउए निरुत्तिए से किं तं सामासिए सामासिए सत्त समासा भवंति [तं जहा]-19३०.५0-130-6 (art) दंदेय बहुब्बीही कम्पधारए दिऊ तहा तपुरिस व्वईभावे एगसेसे य सत्तमे ॥९91-91 (२४९) से किं तं दंदै दंदे-दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम् स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम् वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम् अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम् अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम् से तं दंदे से किं तं बहुदीही बहुब्बीही-फुल्ला जम्मि गिरिमि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुड़य-कयंबो से तं बहुव्बीही से किंतं कम्मधारए कम्मधारए-घवलो वसहो धवलसहो किण्हो भिगो किण्हमिगो सेतो पडो सेतपडो रत्तो पडो रत्तपडो से तं कम्पधारए से किं तं दिगू-तिणि कडुयाणि तिकुडुयं तिण्णि महुराणि तिमहरं तिष्णि गुणा तिगुणं तिष्णि पुराणि तिपुरं तिष्णि सराणि तिसरं तिण्णि पुक्खराणि तिपुक्खरं तिष्णि बिंदुयाणि तिबिंदुर्य तिणि पहा तिपहं पंच नदीओ पंचनदंपत्त गया सत्तगयं नव तुरगा नवतुरगं दस गामा दसगामं दस पुराणि दसपुर से तं दिगू से किं तं तप्पुरिसे तप्पुरिसे-तित्ये कागो तित्यकागो वणे हत्यी वणहत्यी वणे वराहो वणवहारो वणे महिसो वणमहिसो यणे मयूरो वणमयूरो से तं तप्पुरिसे से किं तं अव्वईभावे अब्बईभावे-अनुगामं अनुनदीयं अनुफरिहं अनुचरियं से तं अब्बईमावेसे किं तं एगसेसे एगसेसे-जहा एगो पुरिसो तहा वहवे पुरिसा जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावणा जहा बहवे करिसावणा तहा एगो करिसावणो जहा एगो साली तहा बहदे साली जहा बहवे साली तहा एगोसाली से तं एगसेसे से तं सामासिए से किं तं तद्धित्तए तद्धितए अविहे पत्रत्ते तं जहा-|१३०-६/-130-8 For Private And Personal Use Only
SR No.009775
Book TitleAgam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size2 MB
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