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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुलं- १०८ होजा नो संखेमागे होया नो असंखेज्जइभागो होजा नो संखेज्जेसु भागेसु होखा नो असंखेखेसु भागेसु होला नियमा सव्वलोए होजा एवं दोणि वि संगहस्स आणुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागं फुसंति किं संखेज्जइभागं फुसंति असंखेजड़भागं फुसंति संखेजे भागे फुसंति असंखेने भागे फुसंति सव्वलोगं फुसंति नो संखेइभागं फुसंति नो असंखेज्जइभागं फुसंति नो संखेने मागे फुसंति नो असंखे भागे फुर्सति नियमा सव्यलोगं फुसंति एवं दोण्णि वि संगहस्स आणुपुव्विदव्वाई कालओ केवधिरं होति सव्यद्धा एवं दोणि वि संगहस्स आणुपुव्विदव्याणं अंतरं कालओ केयश्चिरं होई नत्थि अंतरं एवं दोणि वि संगहस्त आणुपुव्विदव्वाई सेसदव्वाणं कइ मागे होज्जा - किं संखेज्जइभागे होज्जा असंखेज्जइमागे होज्जा संखेखेसु भागेसु होजा असंखेज्जेसु भागेसु होजा नो संखेजइभागे होजा नो असंखेजइभागे होजा नो संखेजेसु भागेसु होजा नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा नियमा तिभागे होज्जा एवं दोणि चि संगहस्स आणुपुव्विदव्वाई कयरम्मि मावे होजा नियमा साइपारिणामिए भावे होज्जा एवं दोणि वि अप्पाबहुं नत्थि से तं अनुगमे से तं संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणुपुच्ची से तं अणोवणिहिया दव्याणुपुखी ।९५/-93 (१०९) से किं तं ओवणिहिया दव्वाणुपुची ओवणिहिया दव्वाणुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता तं जहा -पुव्वाणुपुवी पच्छाणुपुवी अणाणुपुच्ची । ९६। 96 (११०) से किं तं पुव्याणुपुथ्वी पुव्वाणुपुथ्वी-धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्यिकाए जीवत्थिकाए पोग्गलत्विकाए अद्धासमए से तं पुव्याणुपुवी से किं तं पच्छाणुपुबी पच्छाणुपुवीअद्धासमए जाव धम्मत्थिकाए से तं पच्छाणुपुवी से किं तं अणाणुपुवी अणाणुपुवी- एयाए चैव एगाइयाए एगुत्तरियाएछ्गच्छ्गयाए सेढीए अण्णमण्णमासो दुरूवूणो से तं अणाणुपुवी । ९७१-97 (१११) अहया ओवणिहिया दव्वाणुपुच्ची तिविहा० पुव्वाणुपुवी पच्छाणुपुबी अणाणुपुवी से किं तं पुव्याणुपुवी पुव्याणुपुब्बी परमाणुपोग्गले दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए संखेनपएसिए असंखेचपएसिए अनंतपए लिए से तं पुव्वाणुपुबी से किं तं पच्छाणुपुव्वी, अनंतपएसिए जाव दुपएसिए परमाणुपोग्गले से तं पच्छाणुपुवी से किं तं अणाणुपुयी, एयाए चैव एगाइयाए अएगुत्तरियाए अनंतंगच्छ्गवाए सेढीए अण्णमण्णमासो दुरूवणो से तं अणाणुपूवी से तं ओवणिहिया दव्वाणुपुबी से तं जाणगसरीर-मवियसरीरवतिरित्ता दव्वाणुपुच्ची से तं नोआगमओ दव्वाणुपुब्वी से तं दव्वाणुपुवी ९८/-98 (११२) से किं तं खेत्ताणु पुथ्वी, खेत्ताणुपुवी दुविहा पन्नत्ता तं मा - ओवणिहियाय अणोवहिणियाय ९९/-88 (११३) तत्य णं जा सा ओषणिहिया सा ठप्पा तत्व णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पत्ता तं जहा - नेगम-ववहाराणं संगहस्स य 1१००/- 100 ( ११४ ) से किं तं नेगम-यवहाराणं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुबी नेगम-यवहाराणं अणोदणिहिया खेत्ताणुपुब्बी पंचविहा पत्रत्ता तं जहा अट्ठपयपरूवणया मंगसमुक्कित्तणया भंगोवदंसणया समोयारे अनुगमे से किं तं नेगम-वयहाराणं अट्ठपयपरूवणया नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया-तिपएसगोढा आणुपुब्बी चउपएसोगाढेआणुपुब्बी जाव दसपएसोगाढे आणुपुच्ची संखेपएसीगाढे आणुपुची असंखेजपएसीगादे आणुपुव्वी एगपएसोगादे अणाणुपुब्वी दुपएसोगाढे अवत्तव्वए तिपएसो गाढा आणुपुवीओ चउपएसोगाढा अणाणुपुबी जाव दसपएसोगाढा For Private And Personal Use Only 12
SR No.009775
Book TitleAgam 45 Anuogdaram Chulikasutt 02 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size2 MB
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