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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदी - (१४३) वियाहे।५०1-49 (97) से किं तं नायाधम्मकहाओ नायाधम्मकहासुर्ण नायाणं नगराई उजाणाईचेइयाई वनसंडाइं समोसरणाइं रायाणो अम्मापियरो धमायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इदिविसेसा मोगपरिचाया पध्वजआओ परिआया सुयपरिग्गडा तयोवहाणाइं संलेहणाओ भत्तपत्रखाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपञ्चायाईओ पुणवोहिलामा अंतकिरियाओ य आघविअंति दस धम्मकहाणं वग्गा तत्थणं एगमेगाए धमकहाए पंचं पंच अक्खाइयासयाई एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाइं एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अस्खाइओवक्खाइयासयाई-एवमेव सपुवावरेणं अद्धाओ कहाणगकोडीओ हयंति त्ति मक्खायं नायाधम्मकहाणं परित्ता यायणा संखेा अनुओगादारा संखेज्जावेढा संखेशासिलोगा संखेशाओनिझुत्तीओ संखेनाओसंगहणीओ संखेशाओपडियत्तीओ से गं अंगठ्ठयाए छठे अंगे दो सुयक्खंधा एगणतीसं अन्झयणा एगणतीसं उद्देसणकाला एगणतीसं समुद्देसणकाला संखेनाइ पयसहस्साई पयग्गेणं संखेशाअक्खरा अनंतागमा अनंतापञ्जया परित्तातसा अनंता यावरा सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिनपनत्ता भावा आपविजंति पत्रविशंति परूविजंति पंसिझंति निसिजति उवदंसिझंति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणा आपविजइसेत्तं नायाधम्मकहओ५१1-50 (१५) से किं तं उवासगदसाओ उवासगदसासु णं समणोवासगाणं नगराई उजाणाई चेइयाई वणसंडाइं समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धमापरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इड्दिविसेसा भोगपरिधाया परिआया सुयपरिग्गहा तयोवहाणाइं सीलब्बय-गुणधरमण-पचक्खाण-पोसहोयवास-पडिवाणया पडिमाओ उयसग्गा संलेहणाओ मतपञ्चखाणाई पाओवगपणाई देवलोगगमणाई सुकुलपञ्चायाईओ पुण बोहिलामा अंतकिरियाओ य आघविनंति उदासगदसाणं परित्तावायणा संखेखाअनुओगदारा संखेजायेदा संखेनासिलोगा संखेजाओनिझुत्तीओ संखेजाओसंगहणीओ संखेशाओपडिवत्तीओ से गं अंगठ्ठयाए सत्तमे अंगे एगे सुयक्वंधे दस अज्झयणा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेलाई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेजाअक्खरा अनंतागमा अनंतापनवा परित्तातसाअनंतायावरा सासय-कड-निबद्धनिकाइया जिनपनत्ता मावा आपविअंति पत्रविनंति परविशंति दंसिशंति निदंसिअंति उवदंप्तिखंति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण पावणा आघयिआइ सेत्तं उदासगदसाओ।५२1-31 (१४६) से किं तं अंतगडदसाओ अंतडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उमाणाई चेइयाई पणसंघाई समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इदिविसेसा भोगपरिधागा पन्चाओ परिआया सुयपरिग्गहा तयोवहाणाई संलेहणाओ भत्तपत्रक्खाणाई पाओवगमणाई अंतकिरियाओ य आपविअंति अंतगडदसाणं परित्ताचायणा संखेशाअनुओगदारा संखेचावेढा संखेशासिलोगा संखेनाओनिनुत्तीओ संखेनाओसंगहणीओ संखेजाओपडिवतीओ सेणं अंगठयाए अहमे अंगे एगे सुयक्खंधे अनुषग्गा अट्ट उद्देसणकाला अट्ठ समुद्देसणकाला संखेलाई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेजाअक्खरा अनंतागमा अनंता पजवा परित्तातसा अनंतापावरा सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिनपनत्ता मावा आपविजंति For Private And Personal Use Only
SR No.009774
Book TitleAgam 44 Nandisuyam Chulikasutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages34
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 44, & agam_nandisutra
File Size1 MB
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