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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुसं-१४० अज्झयणा तेत्तीसं उद्देसणकाला तेतीसं समद्देसणकाला छत्तीसं पयसहस्साणि पयग्गेणं संखेशा अक्खरा अनंतागमा अनंतापजया परित्तातसा अनंतायावरा सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिनपत्रता भावा आपविअंति पत्रविअंति पसविनंति दंसिऑति निदंसिचंति उवदंसिऑति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं धरण-करण-पसवणा आपविजइसेतं सूयगडे 1591-48 (१)से कितं ठाणे ठाणे जंजीवा ठायिञ्जति अजीवा ठाविनंति जीवाजीवा टाविअंति ससमए ठाविआइ परसमए ठाविजइ ससमय-परसमए ठाविसाइ लोए ठाविसइ अलोए ठाविनइ लोयालोए ठाविस ठाणे णं टंका कड़ा सेलासिहारिणो पब्माराकुंडाई गुहाओ आगरा दहा नईओ आपविझंति ठाणे णं एगाइयाए एगुतरियाए वुड्डीए दसडाणग-विवढ़ियाणं मावाणं पावणा आघविजइ ठाणे णं परित्ता वायणा संखेझा अनुओगदारा संखेशा वेढा संखेडा सिलोगा संखेजाओ निझुत्तीओ संखेशाओ संगहणीओ संखेशाओ पडिवत्तीओ से णं अंगठयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा एगवीसं उद्देसणकाला एगवीसं समुद्देसणकाला बावत्तरि पयसहस्साई पयग्गेणं संखेना अक्खरा अनंतागमा अनंतापजवा परित्तातसा अनंताथावरा सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिनपत्रत्ता मावा आघविनंति पनविनंति परुविनंति दंसिझंति निदंसिसति उवदंसिझंति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणा आघविजइसेत्तं ठाणे ४८1-47 (४२) से कि तं समवाए समदाए णं जीवा समसिजंति अजीवा समासिङति जीयाजीवा समासिजंति ससमए समासिञ्जइ परसमए समासिजइ ससमयपरसमए समासिजइ लोए समासिझइ अलोए समासिजइ लोयालोए समासिअइ सपवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसय-विवटियाणं भावाणं परूवणा आघविजा दुवालस विहस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समासिङइ समवायरस णं परित्ता वायणा संखेना अनुओगदारा संखेचा वेढा संखेजा सिलोगा संखेजाओ निझुत्तीओ संखेजाओ संमहणीओ संखेनाओपडिक्त्तीओ सेणं अंगठ्याए चउत्ये अंगे एगे सुयक्खंधे एगे अज्झयणे एगे उदेसणकाले एगे समुद्देसणकाले एगे चोयाले पयसयसहस्से पयग्गेणं संखेजाअक्खरा अनंतागमा अनंतापजवा परित्तातसा अनंताथावरा सासप-कड-निषद्धनिकाइया जिनपन्नत्ता मावा आधविडंति पनविनंति परूविनंति दंसिझंति निदंसिझंति उवदंसिर्जति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणा आघविनइ सेतं समयाए।४९1-48 (11) से किं तं विवाहे, विवाहे गंजीवा विआहिजति अजीया विहिजंति जीवाजीवा विआहिङ्गति ससमए विआहिन्नति परसमए विआहियति ससमय-परसमए विआहिति लोए विआहिति अलोए विआहिजति लोयालोए विआहिअति वियाहस्स णं परिता घायणा संखेा अनुओगदारा संखेजावेदा संखेजासिलोगा संखेजाओनिनुत्तीओ संखेशाओसंगहणीओ संखेनाओ पडिवत्तीओ से गं अंगठ्ठयाए पंचमे अंगे एगे सुयखंधे एगे साइरेगे अन्झयणसए दस उद्देसगसहस्साइंस समुद्देसगसहस्साइंछतीसं वागरणसहस्साइंदो लक्खा अष्ट्ठासीइं पयसहस्साई पयागेणं संखेशासक्खरा अनंतागमा अनंतापजवा परित्तातसा अनंताथावरा सासय-कह-निबद्धनिकाइया जिनपन्नत्ता भावा आघविअंति पत्रविशंति परूविअंति दंसिअंति निदंसिअंति उवदंसिजति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं घरण-करण-परूवणा आपविजइ सेतं For Private And Personal Use Only
SR No.009774
Book TitleAgam 44 Nandisuyam Chulikasutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages34
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 44, & agam_nandisutra
File Size1 MB
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