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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ gri- m पत्रविजंति परूविनंति दंसिखंति निदंसिझंति उवदंसिअंति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं वरण-करण-पख्वणा आपयिजइसेत्तं अंतगडदसाओ।५३1-52 (ru) से किं तं अनुत्तरोयवाइयदसाओ अनुत्तरोययाइयदसासु णं अनुत्तरोववायाणं नगराई उमाणाइं चेइयाई वणसंडाई समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइयाइदियिसेसा भोगपरिचागा पव्वआओ परिआगा सुयपरिगहा तवोवहाणाई पडिमाओ उपसग्गा संलेहणाओ भत्तपमक्खाणाइं पाओवगमणाई अनुत्तरोववाइयत्ते उपवत्ती सुकुलपयायाईओ पुणबोहिलामा अंतिकिरियाओ य आपविशति अनुत्तरोववाइयदसाणं परित्ता वायणा संखेनाअनुओगदारा संखेशावेढा संखेशासिलोगा संखेजाओनिझुत्तीमो संखेनाओ संगहणीओ संखेज्जाओपडिवत्तीओ से णं अंगठ्ठयाए नवमे अंगे एगे सुयक्खंधे तिष्णि यागा तिष्णि उद्देसणकाला तिण्णिसमुद्देसणकाला संखेलाई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेज्जाअक्खरा अनंतागमा अनंतापजया परितातसा अनंतापावरा सासय-कड-निवड-निकाइया जिनपत्रत्ता मावा आघविजंति पश्विनंति परुविनंति दंसिझंति निदंसिअंति उवदंसिखंति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवंचरण-करण-परूवणा आपविनइ सेतं अनुत्तरोववाइयदसाओ।५४।-53 (2) से किं तं पाहावागरणाई पण्हावागरणेसु णं अहुत्तरं पसिणसयं अतरं अपसिणतयं अतरं पसिणापसिणसयं अन्ने य विचित्ता दिन्दा विनाइसया नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आधविअंति पहावागरणाणं परित्तावायणा संखेशाअनुओगदारा संखेज्जावेदा संखेन्जासिलोगा संखेजाओनिनुत्तीमो संखेजाओसंगहणीओ संखेज्जाओ पडिवत्तीओ से णं अंगठ्ठयाए इसमे अंगे एगे सुयक्खंधे पणयालीसं अज्झयणा पणयालीसं उद्देसणकाला पणयालीसं समुद्देसणकाला संखेसाई पयसहस्साइंपयग्गेणं संखेजाअक्खरा अनंतागमा अनंतापजवा परित्तातसा अनंता थावरा सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिनपवत्ता मावा आपविजंति पत्रविजंति परूविजंति दंसिर्जति निदंसिर्जति उवसिअंति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं घरणकरण-परूवणाआघविजइसेत्तं पाहायागरणाई।५५1-84 ___(6r९) से किं तं विवागसुयं विवागसुए णं सुकड-दुक्कडाणं कप्माणं फलविवागे आपविझइ तत्य णं दस दुहविवागा दस सुहविवागा से किं तं दुहविदागा दुहदिदागेसु णं दुहविवागाणं नगराई उमाणाई थणसंडाईचेझ्याइंसमोसरणाइं रायाणो अम्मापियरोधम्मायरिया धमकहाओ इहलोइय-परलोइया रिद्धिविसेसा निरयगमणाई संसारभवपवंचा दुहपरंपराओ दुक्कुलपञ्चायाईओदुल्लाहबोहियतं आपविजइ सेतं दुहवियागा से किं तं सुरुविवागा सुरुविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराई उजाणाई थणसंडाई वेइयाई समोसरणाई याणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइप-परलोइया इदिविसेसा मोगपरिधागा पब्बद्धाओ परिआया सुयपरिगहा तयोवहाणाई सेलंहपाओ मतपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगसमणाई सुरुपरंपराओ सुकुलपचायाईओ पुणबोहिलाभा अंतकिरियाओ य आघविनंति सेत्तं सुहवियागा विवागसुयस्स णं परित्तावायणा संखेनाअनुओगदारा संखेज्जावेदा संखेज्जासिलोगा संखेजाओ निजत्तीओ संखेशाओसंगहणीओ संखेखाओपडिवत्तीओ से णं अंगठ्ठयाए इकारसमे अंगे दो सुथक्खंधा वीसं अज्झयणा यीसं उद्देसणकाला वीसं समुद्देसणकाला संखेचाई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेशाअखरा अनंतागमा अनंतापजवा परितातसा अनंताथायरा सासय-कड-निबद्ध For Private And Personal Use Only
SR No.009774
Book TitleAgam 44 Nandisuyam Chulikasutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages34
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 44, & agam_nandisutra
File Size1 MB
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