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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदी - (१७) आयस्सयं से किं तं आवस्सयवइरितं आवस्सयवरितं दुविहं पनत्तं तं जहा-कालियं व उक्कालियं च से किं तं उक्कालियं उक्कालियं अणेगविहं पत्रतं तं जहा-दसवेयालियं कप्पियाकप्पियं चुलकप्पसुयं महाकप्पसुयं ओवाइयं रायपसेणियं जीया-जीवभिगमे पत्रवणा महापत्रवणा पभायप्पमायं नंदी अनुओगदाराई देविदत्यओ तंदुलवेयालियं चंदावेण्झपं सूरपत्रत्ती [चंद पन्नत्ती?] पोरिसिमंडलं मंडलपवेसो विजाचरणविणिच्छओ गणिविजा झाणविमती मरणविमत्ती आयविसोही मरणविसोही वीयरागसुयं संलेहणासुयं विहारकप्पो चरणविही आउरपचक्खाणं महापञ्चक्खाणं एवमाइ सेत्तं उक्कालियं, से कितं कालियं कालियं अणेगयिह पत्रत्तं तं जहा-उत्तरज्झयणाई दसाओ कप्पो ववहारो निसीहं महानिसीहं इसिमासियाई जंबुद्दीवपत्रत्ती दीवसागरपन्नती चंदपन्नत्ती खुड्डियाविमाणपदिभत्ती महल्लियाविमाणपविभत्ती अंगवूलिया वग्गचूलिया विवाहचूलिया अरुणोववाए वरुणोववाए गरुलोववाए घरणोववाए देसमणोववाए वेलंधरोववाए देविंदोववाए उट्ठाणसुयं सपुट्ठाणसुयं नागपरियावणियाओ निरयावलियाओ कप्पियाओ] कप्पवडसियाओ पुफियाओ पुफचूलियाओ वहिदसाओ एवमाइयाई, घउरासीई पइण्णसहस्साई भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइतित्ययरस्स तहा संखिचाई पदण्णगसहस्साई मज्झिमगाणं जिणवराणं चोद्दस पइण्णगसहस्साणि भगवओ बद्धमाणसामिस्स अहवाअस्स अतिया सीसा उप्पत्तियाए येणइयाए कम्मयाए पारिणामियाए-घडव्यिहाए खुसीए उववेया तस्स तत्तियाई पइण्णगसहस्साई पतेयबुद्धावि तत्तिया चेव सेतं कालियं सेत्तं आवस्सयवइरित्तं सेतं अनंगपविट्ठ।।४।-49 (१३८) से किं तं अंगपविलु अंगपविट्ठ दुवालप्तविहं पत्रत्तं तं जहा-आयारो सूयगडो ठाणं समवाओ विवाहपन्नत्ती नायायम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोययाइयदसाओ पहावागरणाईविवागसुयं दिहिवाओ।४५।-44 (११) से किं तं आयारे णं समणाणं निगंयाणं आयार-गोयर-विणय-वेणइय-सिक्खाभासा-अभासा-चरण-करण-जाया-माया-वित्तीओ आघविनंति से समासओ पंचविहे पत्ते तं जहा-नाणायारे दंसणायारे चरित्तायारे तवायारे वीरियायारे आयारे णं परिता वापणा संखेना अनुओगदारा संखेशा वेढा संखेझा सिलोगा संखेआओ निद्भुतीओ संखेनाओ पडिवत्तीओ से णं अंगठ्ठयाए पढमे अंगे दो सुयखंधा पणवीसं अज्झयणा पंचासीइं उद्देसणकाला पंचासीई समुद्देसणकाला अट्ठारसपयसहस्साणि पयगणं संखेशा अक्खरा अनंतागमा अनंतापजवा परित्तातसा अनंताथावरा सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिनपन्नता भावा आपविञ्जति पञ्चविनंति परुविअंतिदंसिर्जति निदंसिअंति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरण-करणपरूवणा आघयिनइ सेत्तं आयारे।।६।-46 (१४०) से किं तं सूयगडे सूयगडे णं लोए सूइजइ अलोए सूइज्जइ लोयालोए सूइसाइ जीवा सूइज़ति अजीवा सूइजति जीवाजीवा सूइन्नति ससमए सूइजइ परसमए सूइजइ ससमय-परसमए सूइजइ सूरगडे णं आसीयस्स किरियावाइ-सयस्स चउरासीइए अकिरियावाईणं सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं बत्तीसाए वेणइयवाईणं-तिण तेसट्ठाणं पावादुय-सयाणं यूहं किया ससमए ठाविजइ सूपगडे णं परित्ता यायणा संखेसा अनुओगारा संखेना वेदा संखेजा सिलोगा संखेशाओनिनुत्तीओ संखेनाओपडिवत्तीओ से णं अंगठ्ठयाए बिइए अंगे दो सुयखंधा तेवीसं For Private And Personal Use Only
SR No.009774
Book TitleAgam 44 Nandisuyam Chulikasutt 01 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages34
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 44, & agam_nandisutra
File Size1 MB
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