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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दसा-५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८) जहा मत्थए सूईए एताए हम्मती तले । एवं कम्पाणि हम्पति मोहणिजे खयं गते (२९) सेणावतिम्मि निहते जहा सेणा पणस्सती । एवं कम्मा पणस्संति मोहणिजे खयं गते (३०) धूमहीणे जहा अग्गी खीयती से निरिंधणे । एवं कम्पाणि खीयंति मोहणिजे खयं गते (३१) सुक्कमूले जहा रुक्खे सिच्चमाणे न रोहति । एवं कम्मा न रोहंति मोहणिजे खयं गते (३२) जहा दड्ढाण बीयाण न जायंति पुर्णकुरा । कम्मबीएस दड्ढेसु न जायंति भयंकुरा (३३) चिचा ओरालियं बोदि नामगोतं च केवली । आउयं वेयणिज्जं च च्छित्ता भवति नीरओ (३४) एवं अभिसमागम्म चित्तमादाय आउसो । सेणिसोधिमुवागम्म आतसोधिमुबेइइ ।। ति बेमि पंचमा दसा समता 1199 || For Private And Personal Use Only ॥१२॥ 119311 ॥१४ ॥ 119411 ॥१६॥ ॥१७॥ छट्टी दसा उवासगपडिमा (३५) सुयं से आउ तेणं भगवया एवमक्खातं इह खलु येरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पत्रत्ताओ कपरा खलु ताओ घेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पत्रत्ताओ इमाओ खलु ताओ येरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ तं जहाअकिरियावादी यावि भवति नाहियवादी नाहियपत्रे नाहियदिट्ठी नो सम्मावादी नो नितियावादी नसंति पर लोगवादी नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नथि बलदेवा नत्वि वासुदेवा नत्थि सुक्कडजदुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णाफला भवंति अफले कल्लाणपावए नो पच्चायंति जीवा नत्थि निरयादि नत्थि सिद्धी से एवंवादी एवंपत्रे एवंदिट्ठी एवंछंदरागमभिनिविट्टे यावि भवति से य भवति महिच्छे महारंभेमहापरिग्गहे अहम्मिए अहम्माणुए अहम्मसेवी अहम्मिट्ठे अधम्मक्खाई अधम्मरागी अधम्मपलोई अधम्मजीवी अधम्मपलज्जणे अधम्मसीलसमुदाचारे अघम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ हण छिंद भिंद वेकत्तए लोहियपाणी पावो चंडो रुद्दो खुद्दो साहस्सिओ उक्कंचण-पंचण - माया-निअडी- कवड-कूड साति-संपयोगबहुले दुस्सीले दुपरिचए दुरगुणेए दुव्वए दुष्पडियानंदे निस्सीले निग्गुणे निम्मेरे निपचक्खाणपोसहोववासे असाहू सव्याओ पाणाइवायाओ अप्पडिविरए जावजीवाए एवं जाव सव्वाओ कोहाओ सव्वाओ माणाओ सन्याओ मायाओ सव्याओ लोभाओ सव्वाओ पेजाओ दोसाओ कलहाओ अभक्खाणाओ पेसुन्न - परपरिवादाओ अरतिरति मायामोसाओ मिच्छादंसण-सल्लाओ अपडिविरए जावजीवाए सव्वाओ हाणुम्मद्दणा - अमंगण-वण्ाग- विलेवण- सद्द-फरिस - रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओ अपडिविरए जावजीबाए सव्वाओ सगड़-रहजाण - जुग्ग- गिल्लि - थिल्लि-सीया-संमाणिय-सयणासणजाण - वाहण - मोयण- पवित्थरविधीओ अपडिविरए जावजीवाए सब्बाओ आस-हत्यि-गो-महिस
SR No.009765
Book TitleAgam 37 Dasasuyakkhanda Chheysutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages34
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 37, & agam_dashashrutaskandh
File Size1 MB
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