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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 496 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४५) सोलसदेवसहस्सा हयंति चंदेसु धेष सूरेसु अद्वेव सहस्साइं एक्केकमी गहविमाणे (३४६) चत्तारि सहस्साई नक्खत्तंमि य हवंति इक्किक्के दो चैव सहरसाई तारारूक्कूकमेक्कंमि जंबुद्दीय पन्नती-७/२४४/ 1192011-2 (३४७) एवं सूरविमाणाणं जाव तारारूवविमाणाणं नवरं - एस देवसंघाए 19६८/-166 (३४८) एएसि णं भंते चंदिम-सूरियगहगण- नक्खत्त- तारारूवाणं कयरे सव्वसिग्घगई कयरे सव्यसिग्घईतराए घेव गोयमा चंदेहिंतो सूरा सव्वसिग्घगई सूरेहिंतो गहा सिग्घगई गहेहिंतो नक्खत्ता सिई नक्खत्तेहिंतो तारारूवा सिग्घगई सव्वष्पगई चंदा सव्वसिग्घगई तारारूवा ।।१२६।।-1 १६९-167 (३४९) एएसि णं भंते चंदिम सूरिय- गहगण - नक्खत्त-सारारूवाणं कयरे सव्यमहिड्दिया कयरे सव्वपिढिया गोयमा तारारूवेहिंतो नक्खत्ता महिड्ढिया नक्खत्तेहिंतो गहा महिड्ढिया गहिंतो सुरिया महिड्डिया सुरेहिंतो चंदा महिड्डिया सव्वपिढिया तारारूवा सव्यमहिड्डिया चंदा ११७०/-168 For Private And Personal Use Only (३५०) जंबुद्दीवे णं भंते दीवे ताराएय ताराए य केवइए अबाहए अंतरे पत्रत्ते गोयमा दुविहे पत्ते तं जहा वाघाइए य निव्वाघाइए य निव्वाघाइए जहण्णेणं पंचधणुसयाई उक्कोसेणं दो गाउयाई वाधाइए जहण्णेणं दोण्णि छायट्टे जोयणसए उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साइं दोण्णि य बायाले जोयणसए तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते ।१७१ /-169 (३५१) चंदस्स णं मंते जोइर्सिदस्स जोइसरण्णी कइ अग्गमहिसीओ पत्रताओ गोयमा चत्तारि अग्गमहिसीओ पत्रत्ताओ तं जहा - चंदप्पमा दोसिणामा अचिमाली पभंकरा तओ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि चत्तारि देवीसहस्साइं परिवारो पत्रत्तो पभू णं ताओ एगमेगा देवी अण्णं देवीसहस्सं परिवारो विउव्वित्तए एवामेव सपुव्यावरेणं सोलस देवी सहस्सा सेतं तुडिए पमू णं भंते चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धि महयाहयणष्ट- गीय- दिव्वाई जाय भोगभोगाई भुंजमाणे विहरितए गोयमा नो इणट्टे समठ्ठे से केणणं भंते एवं दुखइ-नो पभू जाव विहरित्तए गोयमा चंदस्स जोइर्सिदस्स जोइसरण्णी चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए समाए सुहम्माए माणवए चेइयखंभे वइरामएस गोलवट्टसमुग्गएसु बहुओ जिण सकहाओसणिक्खित्ताओ चिट्ठति ताओ णं चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णी अण्णेसिं च बहूणं जोइसियाणं देवाणं व देवीण प अच्चणिजाओ जाव पज्जुवासणिज्जाओ से तेणट्टेणं गोयमा नो पभूपभूणं चंदे समाए सुहम्पाए चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं एवं जाय दिव्याई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए केवलं परियारिड्ढीए नो घेव णं मेहुणवत्तियं विजया जयंति जयंति अपराजियासव्वेसिं गहाईणं एयाओ अग्गमहिसीओ वत्तब्बाओ इमाहि गाहाहिं ।१७२-१-168-1-R ( ३५२ ) इंगालए विद्यालए लोहितक्खे सणिच्छरे चैव आहुजिए पाहुणिए कणगसणामा य पंचेव (३५३) सोमे सहिए आसासणे य कजोवए य कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखसणामेदितिण्णेव (३५४) एवं भाणियव्यं जाव भावकेउस्स अग्गमहिसी ओ । १७२ / 169-R (३५५) चंदविमाणे णं भंते देवाणं केवइयं कालं ठिई पत्रत्ता गोयमा जहण्णेणं चउभागप - 1193211-1 ।।१२९॥-2
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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