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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ अंबुद्दीव पन्नत्ती- ७/२७६ आयामविक्खंभेणं तिणि जोयणसयसहस्साइं अट्ठारस य जोयणसहस्साइं तिण्णि य पत्ररसुत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं पन्नत्ते जया णं मंते नक्खत्ते सव्वमंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ गोयमा पंच पंच जोयणसहस्साई दोण्णि य पत्रद्वे जोयणसए अट्ठारस य भागसहस्से दोण्णि य तेवद्वे भागसए गच्छइ मंडलं एक्कवीसाए भागसहस्सेहिं नवहिय सहिं सएहिं छेत्ता जया णं भंते नक्खत्ते सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ गोयमा पंच जोयणसहस्साइं तिष्णि य एगूणवीसे जोयणसए सोलस य भागसहस्सेहिं तिणि य पत्रद्वे भागसए गच्छइ मंडलं एगवीसाए भागसहस्सेहिं नवहिं य सहिं सएहिं छेत्ता एए णं भंते अट्ठ नक्खत्तमंडला कइहिं चंदमंडलेहिं समोयरंति गोयमा अट्ठहिं चंदमंडलेहिं समोयरंति तं जहा-पढमे चंदमंडले तइए छट्ठे सत्तमे अट्ठमे दसमे एक्कारसमे पत्ररसमे चंदमंडले एगेमेरोणं भंते मुहुत्तेणं चंदे केवइयाई भागसयाई गच्छद् गोयमा जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चर तस-तस्स मंडल परिक्खेवस्स सत्तरस अठ्ठट्ठे भागसए गच्छइ मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउईए य सएहिं छेत्ता एगमेगेणं मंते मुहुत्तेणं सूरिए केवइयाई भागसयाइं गच्छइ गोयमा जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चाइ तस्स- तस्स मंडलपरिक्खेयस्स अट्ठारसतीसे भागसए गच्छइ मंडलं सयसहस्सेहिं अट्ठाणउईए य सएहिं छेत्ता एगमेगेणं भंते मुहुत्तेणं नक्खते केवइयाई भागसयाई गच्छ गोयमा जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तस्स तस्स मंडलपरिक्खेचस्स अट्ठारस पणतीसे भागसए गच्छइ मंडलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउईए य सएहिं छेत्ता । १५01-149 (२७७) जंबुद्दीवे णं भंते दीवे सूरिया उदीण पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिण मागच्छंति पाईणदाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीणमागच्छंति दाहिणपडीणमुपगच्छ पडीण-उदीणमागच्छति पडिणउदीणमुग्गच्छ उदीण - पाईणमागच्छंति हंता गोयमा जहा पंचमसए पढने उद्देसे जाव नेवत्थि उस्सप्पिणी अवधि एणं तत्थ काले पत्रत्ते समणाउसो इच्चेसा जंबुद्दीवपत्रती सूरपन्नत्ती वत्युसमासेणं समत्ता भवइ जंबुद्दीवे णं भंते दीवे चंदिमा उदीण - पाईणमुग्गच्छइ पाईण-दाहिणमागच्छंति जहा सूरवत्तव्वया जहा पंचमसयस्स दसमे उद्देसे जाव अवट्ठिए णं तत्थ काले पत्रत्ते सम्मणाउसो इच्छेसा जंबुद्दीवपन्नत्ती चंदपन्नत्ती वत्थुसमासेणं समत्ता भवइ ।१५१/-160 (२७८) कइ णं भंते संवच्छरा पत्रत्ता गोयमा पंच संवच्छरा पत्रत्ता तं जहा - नक्खत्तसंवछरे जुगसंवच्छरे पमाणसंयच्छरे लक्खणसंयच्छरे सणिच्छरसंवछरे, नक्खत्तसंवच्छरे णं भंते कइविहे पन्नत्ते गोयमा दुवालसविहे पत्ते तं जहा-सावणे मद्दवए आसोए जाव आसाढे जं या विहप्फइ महग्गहे दुवालसेहिं संयच्छरेहिं सव्वनक्खत्तमंडलं समाणेइ सेतं नक्खत्तसंवछरे जुगसंवच्छरे णं मंते पुच्छा पंचविहे पन्नत्ते तं जहा- चंदे चंदे अभिवड्दिए चंदे अभिवड्दिए चेव प्रढमस्स णं भंते चंदसंवच्छरस्स कइ पव्वा० चउव्वीसं पव्वा पत्रत्ता बिइयस्स णं मंते चंदसंवच्छरस्स कइ पव्या० चउव्वीसं पव्वा पत्ता एवं पुच्छा तइयस्स गोयमा छव्वीसं पव्वा पत्रत्ता चउत्यस्स चंदसंवच्छरस्स चोब्बीसं पव्वा पत्रत्ता पंचमस्स णं अभिवढियस्स छव्दीसं पव्वा पत्रत्ता एवामेव सपुव्वावरेणं पंचसवच्छरिए जुए एगे चउव्वीसे पव्वसए पत्रत्ते सेत्तं जुगसंवच्छरे, पमाणसंवकरे णं भंते कइविहे० पंचविहे पत्रत्ते तं जहा - नक्खत्ते चंदे उऊ आइचे अभिवढिए सेत्तं प्रमाणसंवच्छरे, लक्खणसंवच्छरे णं भंते कइविहे पत्रत्ते गोयमा पंचविहे पत्रत्ते [ तं जहा ] । १५२-१/-161-1 (२७९) समयं नक्खत्ता जोगं जोयंति समयं उदू परिणमंति a नाइसीओ बहूओ होइ नक्खते For Private And Personal Use Only ८५-1
SR No.009744
Book TitleAgam 18 Jambudivapannatti Uvangsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages130
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 18, & agam_jambudwipapragnapti
File Size3 MB
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