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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्नवणा- २१/+/५१६ यवेव्वियसरीरे नो अपञ्चत्तगसंखेज्जवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेऽवियसरीरे, जदि संखेज्जवासाउयगद्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेउव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा जलयर संखेज्जवासाउयगन्भबक्कंतियतिरिकूखजोणि य पंचेदियवेउव्वियसरीरे वि थलयरसंखेज्जवासा उयगब्भवद्भूकंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेऽव्वियसरीरे वि खहयर संखेजवासाउयगब्भवकंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेउव्वियसरीरे वि, जदि जलयरसंखेज्जवासाउयगढभवकूकंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेऽव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा पचत्तगजलयरसंखेज्जवासाउयगब्मवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेउव्वियसरीरे नो अपजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेउब्वियसरीरे० जदि थलयरसंखेज्जवासाउयगब्मवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंद्रियवेउव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयना चउप्पय जाव सरीरे वि परिसप्प जाव सरीरे वि एवं सव्र्व्वेसि नेयं जाव खहपराणं पञ्चत्ताणं नो अपजत्ताणं, जदि मणूसपंचें दियवेउच्चियरीरे किं सम्मुच्छिममणूसपंचेदियवेउब्वियसरीरे गब्भवक्कंतियमणुसपंचेदियवेउव्वियसरीरे गोयमा नो सम्मुच्छिमममणूसपंचेदियवेउब्वियसरीरे गम्भवतियमणुसपंचेदियवेउव्वियसरीरे, जदि गब्भवंकंतियमणुसपंचेदियवेउव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा कम्पभूमगगमवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे नो अकम्मभूमगगव्यवकंतियमणूसपंचेदियवेऊ व्वियसरीरे नो अंतरदीवयगन्भवक्कंतियमणूसपंचेदियवेउव्वियसरीरे, जदि कम्पभूमगगम्भवकुकंतियमणूस पंचेदिय वेडव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा संखेनवासाउयकम्मभूमगंगभवक्कंतियमणूसपंचेदियवेऽव्वियसरीरे नो असंखेज्जवासायकम्मभूमगभवक्कंतियमणूसपंचैदियवेउव्वियसरीरे जदि संखेजवासाउयक्रममभूमगगम्भवतियमणूसपंचेदिय देउव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा पञ्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगद्भवक्कंतियमणूसपंचेदियवेउव्वियसरीरे नो अपञ्चत्तगसंखेज्जवासाज्यकम्मभूमगगब्पवक्कंतियमणूसपंचैदियवेउव्वियसरीरे, जदि देवपंचेंदियवेव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा भवणवासिदेवपंचेदियवेउच्चियसरीरे वि जाव चेमाणियदेयपंचेदिय वेउव्वियसरीरे वि, जदि भवणवासिदेवपंचेदियवेउव्यियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा असुरकुमार जाव थणियकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेडव्वियसरीरे वि, जदि असुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा पजत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेडव्वियरसरीरे वि अपनत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि एवं जाव यणियकुमाराणं दुगओ भेदो एवं वाणमंतराणं अडविहाणं जोइसियाणं पंचविहाणं वैमाणिया दुविहाकम्पोवगा कप्पातीताय कप्पोवगा बारसविहा तेसि पि एवं चेव दुगतो भेदो कप्पातीता दुविहावेगा य अनुत्तरा य गेवेगा नवविहा अनुत्तरोववाइया पंचविहा एतेसिं पञ्चत्तापचत्ताभिलावेणं दुगतो भेदो माणियव्वो । २७१/-270 (५१७) बेउब्वियसरीरे णं भंते किंसंठिए पन्त्रत्ते गोयमा नानासंठाणसंठिए पत्रत्ते बाउक्काइयएगिदियवेउव्वियसरीरे णं मंते किंसंठिए पन्नत्ते गोयमा पडागासंठाणसंठिए पन्नत्ते, नेरइयपंचेंदियवेव्वियसरीरे णं० गोयमा नेरइयपंचेदियवेउव्वियसरीरे दुविहे पन्नत्ते तं जहाभवधारणिज्ज्ञेय उत्तरवेउव्विए य तत्थ णं जेसे भवधारणिज्जे से हुंडठाणसंठिए पन्नत्ते तत्य णं जेसे उत्तरवेउच्चिए से वि इंडसंठाणसंठिए पत्रत्ते, रयणप्पमापुढविनेरइयपंचेदियवेउव्वियसरीरे जं० गोयमा रयणप्पभापुढविनेइयाणं दुविहे सरीरे पत्रत्ते तं जहा-मवधारणिचे य उत्तरवेउच्चिए य तत्य For Private And Personal Use Only
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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