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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मय-२१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४९ [ओरालियस्स ] ओहियस्स एवं तेइंदियाणं तिण्णि गाउयाई, चउरिंदियाणं चत्तारि गाउयाई पंचदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं एवं सम्मुच्छिमाणं गम्भवकंतियाण वि एवं चैव नवओ भेदो पाणियच्चो एवं जलयराण वि जोयणसहस्सं नवओ भेदो धलयराण वि नवओ भेदो [उक्कोसेणं छग्गाउयाई पत्ताण वि एवं चेव सम्मुच्छिमाणं पत्ताण य उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं गमवक्कतियाणं उक्कोसेणं छग्गाउयाई पत्ताण य] ओहियचउप्पयपजत्तय-गव्मवक्कंतियपत्तियाण य उक्कोसेणं छग्गाउयाई सम्मुच्छिमाणं पञ्चत्ताण य गाउयपुहत्तं उक्कोसेणं एवं उरपरिसप्पाण वि ओहिय-गद्भवक्कतियपञ्जत्ताणं जोयणसहस्सं सम्मुच्छिमाणं जोयणपुहत्तं भुवपरिसप्पाणं ओहियगब्भवकूकंतियाण य उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं सम्मुच्छिमाणं धणुपुहतं खहयराणं ओहियगव्भवक्कंतियाणं सम्मुच्छ्रिमाण य तिष्ह वि उक्कोसेण धणुपुहतं । २७०-१1-269-1 (५१३) जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्सं गाउयपुहत्तं भुवए धणुहपुहत्तं च पक्खीसु (५१४) जोयणसहस्स गाउयपुहत्त तत्तो य जोयणपुहत्तं दोहं तु धणुपुहत्तं सम्मुच्छिमे होति उच्चत्तं ।।२१६॥-2 (५१५) मणुस्सोरालिवसरीरस्स णं भंते केमहालिया सरीरोगाहणा० जहणेणं अंगुलस्सअसंखेज्जइभागं उक्कोसेणं तिण्णिगाउयाई अपजत्ताणं जहण्णेण वि उकुकोसेण वि अंगुलस्सअसंखेजइभागं सम्मुच्छिमाणं जहणेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं गम्भवक्तंतियाणं पज्जत्तयाण य जहण्णेणं अंगुलस्सअसंखेज्जइभागं उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई । २७०1-269 (५१६) वेउच्चियसरीरे णं भंते कतिविहे पत्रत्ते गोयमा दुविहे पत्रत्ते तं जहा- एगिंदि - यवेऽव्वियसरीरे य पंचेंदियवेऽव्वियसरीरे य, जदि एगिंदिचवेउब्वियसरीरे किं वाउक्‌कादयएगिंदियवेउव्वियसरीरे अचाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरे गोयमा वाउक्काइएगिंदिययेउब्वियसरीरे नो अवाउक्काइयएगिंदियवेडब्बियरसरीरे, जदि वाउक्काइएगिंदिपवेउब्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा नो मुहुमवाउकूकाइयएगिंदियवेउव्वियसरीरे वादरवाउक्काइयएगिंदियवेउब्वियसरीरे, जदि, बादरवाउक्काइएगिदियवेउव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा पञ्जत्तबादरवारक्काइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे नो अपचत्तबादरवाउक्काइयएगिंदियवेउब्वियसरीरे, जर्दि पंचेदियवेव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा नेरइयपंचेंदियवेडव्वियसरीरे वि जाय देवपंचेदियवेउव्वियसरीरे वि, जदि नेरइयपंचेदियवेव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा रयणप्पभापुढविनेइयपंचेदियवेउब्वियसरीरे वि जाव असत्तमापुढविनेरइयपंचेदियवेऽव्वियसरीरे वि, जदि रयणष्पभापुढविनेरइयपंचेंदियवेव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा पञ्जत्तगरयणप्पभापुढविनेरयपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि अपजत्तगरयणप्पभापुढविनेरइयपंचेदियवेउब्वियसरीरे वि एवं जाव अहेसत्तमाए दुगतो भेदो नेयव्यो, जदि तिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा नो सम्मुच्छिमतिरिक्खजोणियपंचेदिथवेउव्वियसरीरे गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिवपंचेंदियवे उव्वियसरीरे, जदि गमवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेउव्वियसरीरे किं० पुच्छा गोयमा संखेज्जवासाउयगन्मचक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउच्वियसरीरे नो असंखेज्जवासाज्यगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेउव्वियसरीरे जदि संखेज्जवासाउयगव्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेदियवेउव्विवसरीरे किं० पुच्छा गोयमा पञ्जतगसंखेज्जवासाउयगबअभवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदि For Private And Personal Use Only ॥२१५।-1
SR No.009741
Book TitleAgam 15 Pannavana Uvangsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages210
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size4 MB
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