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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उषासगवताओ /५७ अहं इमेणं एयारूयेणं ओरालेणं जाव किसे धमणिसंतए जाए तं अत्यिता मे उहाणे कप्पेबले वीरिए पुरिसकार-परकमेतद्धा-घि-संवेगे तं जावता मे अस्थि उहाणे कम्मे जाव य मे धम्मायरिए धपोवएसए सपणे पगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ तावता मे सेयं कार पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्टीयस्मि सूरे सहस्सरस्समिम्मि दिणयो तेयसा जलंते अपच्छिममारणंतियसलेहणाझूसणा-झूसियस्स पत्तपाण-पड़ियाइक्खियस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ संपेहेता कल्लं पाउपभायाए रयणीए जाव उट्टियम्मि सूरे जाव विहरइ तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए बहूहि सील-व्यय-गुण-वेरपण-पचक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाइं समणोवासगपरियायं पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्पं काएण फासित्ता पासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते सपाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणगवे विमाणे देयत्ताए उववण्णे तत्य णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओबमाई ठिई पत्रत्ता नंदणीपियस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओयमाई ठिई पन्नत्ता से णं भंते नंदिणीपिया ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवखएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइता कहिं गमिहिइ कहिं उववजिहिइ गोयमा महाविदेहे वासे सिन्झिहिइ बुझिहिइ मुचिहिइ सव्वदुक्याणमंतं काहिइ एवं खलु जंतू सपणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं नवपस्स अझयणस्स अयमढे पन्नत्ते ।५५।-56 नवर्ष अग्यणं तमत्तं. दसमं अज्झयणं-लेइयापिता (५८) जिइणं भंते समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सतमस्स अंगस्स उवासगदसाणं नवमस्स अज्झवणस्स अयमद्वे पनत्ते दसमस्सणं भंते अज्झयणस्स के अढे पन्नते] एवं खलु जंबू तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थीए नयरीए कोहए चेइए जियसत्तू राचा तत्थ णं सावत्थीए नयरीए लेइयापिता नाम गाहावई परिवसइ-अढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए तस्स णं लेइयापियस्स गाहावइस्स चतारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ चतारि हिरण्णकोडीओ वढिपत्ताओ चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था सेणं लेइयापिता गाहावई बहूणंजाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिग्ने सयस्स वि य गं कुटुंबस्स मेढी जाव सव्वकजवड्ढावए यावि होत्या तस्सणं लेइयापियस्स गाहावइस्स फागुणी नामं भारिया होत्या-अहीण-पडिपुत्र-पंचिंदियसरीरा जाव माणुस्सए कामभोए पचणुभवमाणी विहरइ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे परिसा निग्गया कूणिए राया जहा तहा जियसत्तू निग्गच्छ जाव पज्जूवासइ तए णं से लेइयापिता गाहावई इमीसे कहाए लद्धढे समाणे-एवं खलु समणे भगवं पहावीरे पुब्बाणुपुलिंब चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह सपोसढे इहेव सावत्थीए नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओपिण्हिता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइतं महष्फलं खलु भो देवाणुप्पिया तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नाम गोयस्स विसवणयाए किंमग पुण अभिगमण-वंदण-नमसण-पडिपुच्छण-पञ्जुवासणयाए एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुचवणस्स सचणयाए किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए तं गच्छामि णं देवाणप्पिया समणं भागवं महावीरं वदामि नमसामि सककारेमि सम्मासि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पञ्जुवासामि-एवं संपेहेइ संपेहेत्ता पहाए कयबलिकम्मे कय कोउय-मंगलं-पायचित्ते सुद्ध For Private And Personal Use Only
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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