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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अझषणं १० ६१ पावेसाई मंगल्लाई बत्थाई पवर परिहए अप्पमहग्धाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं मणुस्तवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचाणरेणं सावत्थि नयरिं मज्मज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणामेव कोट्ठए चेइए जेणेव समणे भगवं महाबीरे तेणेव उवागच्छइ उयागच्छिता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइ नमसइ वंदिता नमसित्ता नच्चासणे नाइदूरे सुस्सुसमणे नमसमाणे अभिमुद्दे विणएणं पंजलिउडे पजुवासइ तणं समणे भगवं महावीरे लेइयापियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाब धम्मं परिकहेइ परिसा पडिगया राया य गए तए णं से लेइयापिया गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीड़मणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए उडाए उद्वेइ उद्वेता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्ती आयाहिण -पयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइ नमसड़ वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी सद्दहापि णं भंते निगांय पावयणं पत्तियामि जं भंते निथं पावयणं रोएमि णं भंते निग्गंथं पावयणं अब्भुट्ठेमि णं भंते निग्गंथं पाववणं एवमेयं भंते तहमेयं मंते अवितहमेयं भंते असंदिद्धमेयं भंते इच्छियमेयं भंते पडिच्छियमेयं भंते इच्छियपडिच्छियमेयं भंते से जहेयं तुम्भे वदह जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर -तलवरमाडंबिय- कोडुंबिय इम-से-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्यइत्तए अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं सावगधम्मं पडिजस्लाम अहासुरं देवागुप्पिया मा पडिबंधं करेहि तए णं से लेइयापिता गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावयधम्मं पडिवज्जइ तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ सावत्थीए नयरीए कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ तए णं से लेइयापिता समणीवासए जाए- अभिगयजीवाजीवे जाव समणे निगांधे फासु एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम - साइमेणं वत्य-पडिग्गह- कंबल - पायपुंछणेणं ओसह-भेसणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग - सेज्जा-संधारएणं पडिलामेमाणे विहरइ तए णं सा फग्गुणी मारिया सममोवासिया जाया-अभगयजीवाजीवा जाय विहरइ तए णं तस्स लेइयापियस्स समणीयासगस्स बहूहि सील-व्य-गुण- वेरमण पञ्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं मावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराई वीइक्ताई पत्ररसपस्स संवच्छरस्त अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल - समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकष्पे समुपखित्था एवं खलु अहं सावत्थीए नयरीए बहूणं जाव आपुच्छणिजे पडिपुच्छणिजे सयस वि यणं कुटुंबस्स पेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपजित्ता णं विहरित्तए तए णं से लेइयापिता समणोवासए जैट्ठपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च आपुच्छइ आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता सावयि नयरिं मज्झभज्झेणं निग्गच्छइ निग्गत्थिता जेणेच पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ उयागच्छिता पोसहसालं पमज्जइ पमजित्ता उच्चार- पासवणभूमिं पडिलेहेइ पडिलेहेत्ता दब्मसंथरायं संथ संथरेत्ता दब्मसंधारयं दुरुहइ दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभवारी उम्मुक्कमणि सुबण्णे यवगयमालावण्ण- गलबिलेवणे निक्खित्तसत्यमुसले एगे अबीए दमसंथारो गए। समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नतिं उवसंपद्मित्ताणं For Private And Personal Use Only
SR No.009733
Book TitleAgam 07 Uvasagdasao Angsutt 07 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages74
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 07, & agam_upasakdasha
File Size2 MB
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