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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवई ३/-/६/१९१ वेउव्वियलद्धी विभंगनाण- लद्धी इड्ढि जुती जसे वले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए सेसे दंसण-विवच्चासे भवति से तेणद्वेणं गोयमा एवं युवइ-नो तहाभावं जाणइ-पासइ अण्णाभावं जाणइ-पासइ अणगारे णं भंते भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी विरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहं नगरं समोहए समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रुवाइं जाणइ पासइ हंता जाणइ-पासइ से भंते किं तहाभावं जाणइ पासइ अण्णहाभावं जाणइ पास गोयमा तहाभावं जाणइ पासइ नो अण्णहाभावं जाणइ-पास से केणद्वेमं मंते एवं बुवइ - तहाभावं जाणइ-पासइ नो अण्णाभावं जाणइ पासइ गोयमा तस्स णं एवं भवइ एवं खलु अहं रायहगिहे नयरे समोहए समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रुवाई जामामिपासामिसेस दंसण अविवञ्चासे भवति से तेणट्टेणं गोयमा एवं बुझइ - तहाभावं जाणइ-पासइ नो अण्णाभावं जाणइ-पासइ अणगारे णं भंते भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी बीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए वाणारसिं नगरिं समोहए समोहणित्ता रायगिहे नगरे रुवाई जाणइ-पास हंता जाणइ - पास से भंते किं ताभावं जाणइ-पासइ अण्णाभावं जाणइ-पासइ गोमा तहाभावं जाणइ - पासइ नो अण्णाहाभावं जाणइ-पास से केणणं भंते एवं बुइतहाभावं जाणइ-पासइ नो अण्णाभावं जाणइ-पासइ गोयमा तस्स णं एवं भवइ एवं खलु अहं वाणारसिं नगरिं समोहए समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाएं जाणामि पासामि सेसे दंसणअविवञ्चासे भवति से तेणट्टेणं गोयमा एवं वुच्चइ - तहाभावं जाणइ पासइ नो अण्णहाभावं For Private And Personal Use Only - जाणइ - पासइ ११६१1-161 (१९२) अणगारे णं मंते भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिनालद्धीए रायगिहं नगरं वाणारसिं च नगरि अंतरा एगं महं जणवयग्गं समोहए समोहणित्ता रायगिहं नगरं वाणारसिं च नगरिं अंतरा एगं महं जणवयग्गं जाणइ-पासइ हंता जाणइपासइ से भंते किं तहाभावं जाणइ-पासइ अण्णहाभावं जाणइ-पासइ गोयमा तहाभावं जाणइपासइ नो अण्णाभावं जाणइ-पास से केणट्टेणं भंते एवं बुच्चइ-तहाभावं जाणइ-पासइ नो अण्णाभावं जाणइ-पासइ गोयमा तस्स णं एवं भवति-नो खलु एस रायगिहे नगरे नो खलु एस वाणारसी नगरी नो खलु एस अंतरा एगे जणवयग्गे एस खलु ममं वीरियलद्धी येउव्वियलद्धी ओहिनाणलद्धी इड्ढी जुती जसे बले बीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए सेसे दंसण अविवच्चासे भवइ से तेणट्टेणं गोयमा एवं बुइ - तहाभावं जाणइ पासइ नो अण्णहाभावं जाणइ-पासइ अणगारे णं भंते भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एवं महं गामरूवं या नगररूवं वा जाव सण्णिवेसरूवं या विउचितए नो तिणट्ठे सट्टे [ अणगारे णं भंते भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं गामरूवं वा नगररूवं वा नगररूवं वा जाव सण्णिवेसरूयं या विउवित्तए हंता पभू] अणगारे णं भंते भाविअप्पा केवइयाई पभू गामरूवाई विकुव्वित्तए गोयमा से जहानामए- जुवतिं जुवाणे हत्येणं हत्थे गेण्हेजा तं चैव जाव विकुव्विसु वा विकुच्यति वा विकुव्विस्सति वा एवं जाव सण्णिवेसरूयं वा 19६२1-162 ( १९३) चमरस्स णं भंते असुरिंदस्स असुरण्णो कइ आयरक्खदेव साहस्सीओ पत्रत्ताओ गोयमा चत्तारि चउसडीओ आयरक्खदेवस्सीओ पत्रत्ताओ ते णं आयरक्खा वण्णओ एवं सव्वेसि इंदाणं जस्स जत्तिया आयरक्खा ते भाणियव्वा सेवं भंते सेवं भंते त्ति । १६३ । - 163 • तहए सते छट्टो उहेसो समतो
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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