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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सइयं सतं उद्देसो-५ परिड्ढीए गच्छइ गोयमा आइढीईए गच्छइ नो परिड्ढीए गच्छइ से भंते किं आयकम्पुणा गच्छइ परकम्पुणा गच्छइ गोयमा आयकम्मुणा गच्छइ नो परकम्पुणा गच्छइ से भंते किं आयप्पयोगेणं गच्छइ परप्पयोगेणं गच्छइ गोयमा आयप्ययोगे णं गच्छइ नो परपयोगे णं गच्छइ से भंते किं ऊसिओदयं गच्छइ पतोदयं गच्छइ गोयमा ऊसितोदयं पि गच्छइ पतोदयं पि गच्छ से णं भंते किं अणगारे आसे गोयमा अणगारे णं से नो खलु से आसे एवं जाव परासररूवं वा से भंते कि मायी विकुव्वइ अमायी विकुव्वइ गोयमा माघी विकुव्वइ नो अमायी विकुव्वइ मायी णं भंते तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालं करेइ कहिं उबवज्जइ गोयमा अण्णयरेसु आभियोगिएसु देवलोगेसु देवत्ताए उबवजइ अमायी णं भंते तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कूकंते कालं करेइ कहिं उबबज्जइ गोषमा अण्णयकेसु अणाभि-योगिएसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जइ सेवं भंते सेवं भंते ति ।१६७/- 167 ( १९० ) इत्थी असी पडागा जण्णोवइए य होइ बोद्धव्वे पल्हत्थिय पलियंके अभिओग विकुव्वणा मायी • तइए सते पंचमो उद्देसो समत्तो • -: छट्टो - हे सो : ( १९१ ) अणगारे णं भंते भावियप्पा मायी मिच्छदिट्ठी वीरियालद्धीए वेउव्वियलदद्धीए विभंगनाणलद्धीए बाणारसिं नगरिं समोहए समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाई जाणइपासइ हंता जाणइ-पासइ से भंते किं तहाभावं जाणइ-पासइ अण्णाहाभावं जाणइ-पासइ गोयमा नो तहाभावं जाणइ-पासइ अष्णहाभावं जाणइ-पास से केणट्टेणं भंते एवं बुच्चइ-नो ताभावं जाणइ पासइ अण्णाभावं जाणइ-पासइ गोयमा तस्स णं एवं भवइ एवं खलु अहं रायग नगरे समोहए समोहणिता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणामि - पासामि सेसे दंसणविवच्चासे भवइ से तेणट्टेणं [गोयमा एवं बुच्चइ-नो तहाभावं जाणइ-पासइ अण्णाभावं जाणइ ]पासइ अणगारे णं भंते भावियप्पा मायी मिच्छदिट्ठी बीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए रायगिहे नगरे समोहए समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रुवाई जाणइ-पासइ हंता जाण - पास से भंते किं तहाभावं जाणइ-पासइ अण्णाभावं जाणइ पास गोयमा नो तहाभावं जाणइ-पासइ अष्णहाभावं जाणइ-पासइ से केणणं भंते एवं बुधइनो तहाभावं जाण - पासइ अण्णाभावं जाणइ - पास गोयमा ] तस्स णं एवं भवइ एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए समोहए समोहणित्ता रायगिहि नगरे रुवाई जाणामि-पासामि सेसे दंसण - विवचासे भवति से तेणणं गोयमा एवं दुच्चइ- नो तहापावं जाणइ-पासइ अण्णाभावं जाणइ-पासइ अणगारे णं मंते भावियप्पा मायी मिच्छदिट्ठी वीरियलद्धीए वेडब्बियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वाणारसि नगरिं रायगिहं च नगरं अंतरा एवं महं जणवयग्गं समोहए समोहणित्ता वाणारसिं नगरिं रायगिलं च नगरं अंतरा एगं महं जणवयग्गं जाणति- पासति हंता जाणति- पासति से भंते किं तहाभावं जागइ-पासइ अण्णहाभावं जाणइ-पासइ गोयमा नो तहाभावं जाणइ-पासइ अण्ण- हाभावं जाणइ-पास से केणणं भंते एवं बुधइ-नो तहाभावं जागइपासइ अण्णहाभावं जाणइ-पासइ गोयमा तस्स खलुं एवं भवति - एस खलु वाणारसी नगरी एस खलु रायगिहे नगरे एस खलु अंतरा एगे महं जणवयगे नो खलु एस महं वीरियलद्धी 56 For Private And Personal Use Only ॥२६॥-26 ८१
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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