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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ पी सतं . उदेसी-१ कच्चायण- सगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोना निसम्म हत्तुह [चितामाणदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणं] हियए उद्याए उट्टेइं उतॄत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणंपयाहिणं करेइ कोता वंदइ नमसइ यंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-सदहामि णं मंते निग्गंथं पावयणं पतियामि णं भंते निग्गंथं पावयणं रोएमिण भंते निग्गंयं पावयणं अटभुट्टेमि णं मंते निग्गंथं पावयणं एवमेयं भंते तहमेयं भंते अवितहपेयं भंते असंदिद्धमेयं भंते इच्छियमेयं भंते पडिच्छियमेयं भंते इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते - से जहेयं तुमे वदह ति कट्ट समणं मग महावीरं बंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरस्थिमं दिसीभायं अवकमइ अवक्कमित्ता तिदंडं च कुंडियं व जाव धाउरत्ताओ य एगंते एडेइ एडेता जेणेव सपणे भगवं महावीरे तेणेव उवागछाइ उवागच्छित्ता सपणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं-पयाहिणं करेइ करेत्ता दिइ नमंसह वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-आलिते णं मंते लोए पलिते णं भंते लोए आलित्त-पलिते णं भंते लोए जराए मरणेण य से जहा- नापए केइ गाहावई अगारंसि झियायमाणंसि जे से तत्थ भंडे भवद अपभारे मोल्लगरुए तं गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमइ एस मे नित्यारिए समाणे पच्छा पुरा च हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ एवामेव देवाणुपिया मज्झ वि आया एगे भंडे इटे कंते पिए मणुण्णे मणापे थेग्जे वेस्सासिए समे बहुमए अनुमए भंडकरंडगसमाणे मा णं सीयं पा णं उपहं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसया मा णं वाइय-पित्तिय सेभिय-सत्रिवाइयं विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसतु ति कट्ट एस मे नित्यारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए आनुगामियत्ताए भवि- स्सइ तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया सयमेव पव्वावियं सयपेव मुंडावियं सयमेव सेहाचियं सय- मेव सिक्खाचियं सयमेव आयार-गोयरं विणय-वेणयइ-चरण-करण-जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं तह णं समणे भगवं पहावीरे खंदयं कच्चायणसगोत्तं सयमेव पव्वावेइ [सयपेव मुंडावेइ सयमेव सेहावेइ सयमेव सिक्खादेइ सयमेव आयार-गोयरं विणय-येणइय-चरणकरण-जायामायावत्तियं] धम्ममाइक्खइ-एवं देवाणुप्पिया गंतव्यं एवं विडियव्वं एवं निसीइपव्वं एवं तुयट्टियव्वं एवं भुंजियवं एवं भासियव्वं एवं उट्ठायउट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीयेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमियव्वं अस्सि च णं अडे नो किंचि वि पमाइयब्वं तए णं से खंदए कच्चायणसगोते समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयास्वं धम्मियं उवएसं समं संपडिवजइतपाणाए तह गच्छइ तह चिटई तह निसीयइ तह तुयट्टइ तह मुंजइ तह भासइ तह उद्यायउट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहि सत्तेहिं संजमेणं संजमेइ अस्सिं च णं अट्टे नो पमायई तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्तं अणगारे जाते-इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंधाणं-जल्ल पारिष्ठावणियासमिए मणसमिए वइसमिए कायसमिए मणगुत्ते दइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी चाई लज्यू धन्ने खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अनियाणे अप्पुस्सुए अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरइ ।९१191 (११४) तए णं सपणे भगवं महावीरे कयंगलाओ नयरीओ छत्तपलासाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ तए णं से खंदए अणगारे For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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