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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सतं - १९, उद्देसो·६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७७ -: छ ट्ठी- उ द्दे सो : (७६८) कहि णं भंते दीवसमुद्दा केवतिया णं भंते दीवलमुद्दा किंसंठिया णं भंते दीवसमुद्दा एवं जहा जीवाभिगमे दीवसमुदुद्देसो सो चेव इह वि जोइसपंडिउदेसगवजी भाणियव्वो जाव परिणामो जीवउवाओ जाव अनंतखुत्तो सेवं भंते सेवं भंते त्ति 1६५८1-657 ● एगुणवीसइमे सते घट्टो उद्देसो समत्तो -: सत्त मोउ द्दे सो : (७६९) कंवतिया णं भंते असुरकुमारभवणावासस सहसा पन्ता गोयमा चोयाट्ट असुरकुमारभवणावाससयसहस्सा पत्रत्ता ते णं भंते किंमया पत्रता गोयमा सञ्चारयणामधा अच्छा सहा जाव पडिवा तत्य णं बहवे जीवा य पोग्गला व वक्कमंति विउक्कमंति चयंति उववज्रंति साप्तया णं ते भवग दव्बट्टयाए यण्णपञ्जवेहिं जाव फासपचवेहिं असासया एवं जाव थणियकुमारावासा केवतिया णं भंते वाणमंतरभोमेजनगरवाससवसहस्सा पत्रत्ता गोवमा असंखेज्जा वाणमंतर भोजनगरावासस्यसहस्सा पन्नत्ता ते णं भंते किंमया प. सेसं तं चैव केतविया णं भंते जोइसियविभागादाससवतहस्सा प. गोयमा असंखेज जोइसियविमाणावा- सस्यसहरसा पन्नत्ता ते णं भंते किमया पत्रत्ता गोयना सव्वकालिहानया अच्छा सेसं तं चैव सोहम्मे णं भंते कप्पे केवतिया विमाणावासस्यसहरसा पत्रत्ता गोयमा वत्तीसं विमाणावासस्यसहस्सा प. ते णं भंते किंमया पत्ता गोयमा सव्वश्यणामना अच्छा सेसं तं चैव जाव अनुत्तरविमाणा नवरं जाणंयव्वा जत्थ जत्तिया भवणा विभाणा वा सेवं भंते सेवं भंते ति ६५९।-658 ● एकूणवीस मे सते सत्तो उद्देसो समत्तो ● -: अमोउ द्दे सो : (७७०) कतिदिहा णं भंते जोवनिव्वती पत्ता गोयमा पंचविहा जीवनिव्वती पन्त्रत्ता तं जहा -एर्गिदियजीवनिव्वती जाव पंचिदियजीवनिव्वत्ती एगिंदियजीवनिव्यत्ती णं भंते कतिविहा पत्रत्ता गोयमा पंचविहा पत्रत्ता तं जहा पुढदिक्काइयए गिदियजीवनिव्यत्ती जाव वणस्सइकाइयएगिंदियजीवनिवत्ती पुढविकाइएदियजीवनिवत्ती णं भंते कतिविहा पत्रत्ता गीयमा दुबिहा पक्षता तं जहा- मुहमढविकाइयएगिदिवजीवनिव्वती य बादरपुढविकाइ एगिंदियजीवनिवत्ती य एवं एएणं अभिलावेण भेदो जहा बहुगबंधो तेयगसरीरस्स जाव- सव्वट्टसिद्ध अनुत्तरोववातियकप्पातीतवेमाणियवेदपंचिंदियजीवनिव्यत्ती णं भंते कतिविहा पन्नत्ता गोयमा दुविहा पत्रत्ता तं जहा - पचत्तगसच्चसिद्ध अनुत्तरोक्वातियकप्पातीत्तवेमाणिय देवपंचिदियजीवनिव्यत्ती य अपज्जतगसव्वसिद्धाणुत्तरोववातियकप्पातीतवेमाणियदेवपंचिदियजीवनिव्वत्ती य कतिविहा एवं भंते कम्मनिव्यत्ती पत्ता गोयमा अट्ठविहा कम्पनिव्वती पत्रत्ता तं जहा-नाणावरणिजकग्ननिव्यत्ती जाब अंतराइयकम्पनिव्वत्ती नेरइयाणं भंते कतिविहा कम्पनिव्वत्ती पत्रत्ता गोयमा अट्ठविहा कम्म निव्वती पत्रत्ता तं जहा नामावरणिजकम्मनिव्वत्ती जाव अंतराइयकम्मनिव्यत्ती एवं जाव मणियाणं कतिविहाणं भंते सरीरनिव्वत्ती पन्त्रत्ता गोयमा पंचविहा सरीरनिव्वती पत्रत्ता तं जहाओरालिय सरीरनिव्वत्ती जाव कम्मासरीरनिव्वत्ती नेरइयाणं भंते कतिविहा सरीरनिव्यत्ती पन्नत्ता एवं चैव एवं जाव देमाणियागं नवरं - नायव्यं जस्स जइ सरीराणि कतिविहाणं भंते सव्विदियनिव्वती पत्रत्ता गोयमा पंचविहा सध्विदिवनिव्यत्ती पन्नत्ता तं जहा- सोइंदियनिव्वती जाब फासिंदियनिव्वत्ती एवं नेरइयाणं जाव धणियकुमाराणं पुढविकाइ For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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