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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ भगवई . १९/-1८४७७० याणं-पुच्छा गोयमा एगा फासिंदियनिव्वत्ती पन्नत्ता एवं जस्स जति इंदियाणि जाव वेमाणियाणं, कतिविहा णं भंते भासानिव्वत्ती पन्नत्ता गोयमा चउविव्हा मासानिव्वत्ती पन्नत्ता तं जहासम्रभासानिव्वत्ती मोसमासानिव्वत्ती सच्चामोसभासा निव्यत्ती असच्चामोसमासानिव्बत्ती एवं एगिदिचवलं जस्स जा भासा जाब वेमाणियाणं, कतिविहा णं भंते पणनित्यत्ती पन्नत्ता गोयमा चउबिहा मणनिव्वत्ती पत्रत्ता तं जहा-सच्चमणनिव्यत्ती जाद असच्चामोसमणनिव्वत्ती एवं एगिदियविगलिंदियवजं जाव वेमाणियाणं, कतिविहा णं भंते कसायनिव्वती पन्नत्ता गोयमा चउब्विहा कसायनिव्यत्ती पन्नता तं जहा कोहकसायनिव्वत्ती जाव लोभकसायनिव्वत्ती एवं जाव वेमाणियाणं, कतिविहा णं भंते वण्णनिवत्ती पन्नत्ता गोयमा पंचविहा वण्णनिव्वती तं जहाकालावण्णनिव्यत्ती जाव सुकिकलावण्णनिव्वत्ती एवं निरवसेसं जाय वेमाणियाणं एवं गंधनिव्वती दुविहा जाव वेमाणिवाणं, रसनिव्वती पंचविहा जाव वेगाणियाणं फासनिव्यत्ती अविहा जाव वेपाणियाणं कतिविहा णं भंते संठाणनिबत्ती पत्रत्ता गोचमा छविहा संठाणनिव्वती पत्रत्ता तं जहा-समचउरंससंठाणवनिव्यत्ती जाव हुंडसंठाणनिव्वत्ती नेरइयाणपुच्छा गोरमा एगा हुँइसंटाणनिव्वत्ती पत्रत्ता असुरकुमाराणं-पुच्छा गोयमा एगा समचउरसंसंठाणनिव्वत्ती पन्नत्ता एवं जाव थणियकुमाराणं, पुढविकाइयाणं-पुच्छा गोयमा एगहा मस्तूरचंदसंठाणनिव्वत्ती पत्रत्ता एवं जस्स जं संठाणं जाव वेमाणियाणं कतिविहा णं भंते सपणानिव्वती पनत्ता गोयमा चव्यिहा सण्णानिव्वत्ती पनत्ता तं जहा-आहारसण्णानिव्वती जाव परिगहण्णानिव्वत्ती एवं जाव वेमाणियाणं कतिबिहा णं भंते लेस्सानिव्वती पन्नत्ता गोयमा छबिहा लेस्सानिव्वत्ती पत्रत्ता तं जहा कण्हलेस्सानिय्यत्ती जाव सुक्कलेस्सानिव्वत्ती एवं जाद वेमाणियाणं जस्स जति लेरसाओ कतिविहा णं भंते दिट्ठीनिव्वती पनत्ता गोयमा तिविहा दिट्ठीनिव्वत्ती पन्नता तं जहा-सम्मादिट्टिनिव्यत्ती मिच्छादिहिनिव्वती सम्मामिच्छादिविनिव्वत्ती एवं जाव वेमाणियाणं जस्स जतिरिहा दिट्ठी कतिविहा णं भंते नाणनिब्बत्ति पन्नता गोयमा पंचविहा नाणनिव्वती पत्रत्ता तं जहाआभिणिबोहियनाणनिव्वत्ती जाव केवलनाणनिव्वत्ती एवं एगिदियवजं जाव वेमाणियाणं जस्स जति नाणा कतिविहा णं भंते अण्णाणनिती पनत्ता गोयमा तिचिहा अन्नाणनिव्वत्ती पन्नता तं जहा-मइअण्णाणनिव्यत्ती सुयअण्णाणनिव्वत्ती विभंगनाण- निव्वत्ती एवं जस्स जति अण्णाणा जाव येमाणियाणं, कतिक्हिा णं भंते जोगनिव्वती प. गोयमा तिविहा जोगनिव्वती प. मणजोगनिव्यत्ती वजोगनिव्यत्ती कायजोगनिव्यत्ती एवं जाब येमाणि-याणं जस्स जतिविहो जोगो कतिविहा णं भंते उवओगनिव्यत्ती प. गोयमा दुविहा उवओगनिव्यत्ती प. जहासागारोवओगनिव्वत्ती अणागारोव-ओगनिव्वती एवं जाव चेमाणियाणं ।६६०1-660-1 (७७१) जीवाणं निव्वत्ती कमप्पगडी सरीरनिव्वत्ती सबिदियनिव्यती भासा य मणे कसाया य (७७२) वण्ण रस गंध फासे संठाअविहीय होइ बोद्धब्बा लेस दिट्टी नाणे उवओगे चेवजोगे य ॥८३||-2 (७७३)सेवं भंते सेवं भंते ति।६६०1-660 एगणवीसमे सत्ते असो उद्देसो समतो. ॥८२||-1 For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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