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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं-१५ पउपरिहारं परिहरामि जे वि आई आउसो कासवा अहं समयंसि केइ सिग्झिसु वा सिन्झंति वा सिज्झिस्संति वा सब्बे ते चउरासीतिं महाकप्पसयसहस्साई सत्त दिव्बे सत संजूहे सत्त सण्णिगब्भे सत्त पउट्टपरिहारे पंच कम्मणि सयसहस्साई सद्धिं च सहस्साई छच्च सए तिष्णि य कम्मसे अणुमुब्वेणं खवइत्ता तओ पच्छा सिझंति युति मुचंति परिनिव्यायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेसुं वा करेति वा करिस्संति वा से जहा वा गंगा महानदीजओपवूढा जहिं वा पञ्जवस्थिया एसणं अद्धा पंचजोयणसाइंआयामेणं अद्धजोयणं विक्खंभेणं पंच धणुसयाइंउव्वेहेणं एएणं गंगापमाणेणं सत्त गंगाओ सा एगा महागंगा सत महागंगाओ सा एगा सादीणगंगा सत्तसादीणगंगाओ सा एगा मदुगंगा सत मदुगंगाओ सा एगा लोहियगंगा सत्त लोहियगंगाओ सा एगा आवतीगंगा सत्त आवतीगंगाओ सा एगा परमावती एवामेव सपुव्वावरेणं एगं गंगासयसहस्सं सतर सहस्सा छच्च अगुणपत्रं गंगासया भवंती मक्खाया तासिं दुविहे उद्धारे पत्रत्ते तं जहा-सुहुमबोदिकलेवरे चेव बायरवोदि कलेवरे चैव तत्थ णं जे से सुहमबोंदिकलेवरे से ठप्पे तस्थ णजे से बायरे बोदिकलेवरे तओणं वाससए गए वाससए गए एगमेगं गंगावालुयं अवहाय जावतिएणं कालेणं से कोटे खीणे नीरए निल्लेवे निहिए भवति सेत्तं सरे सरप्पमाणे एएणं सरप्पमाणेणं तिण्णि सरसय साहस्सीओ से एगे महाकपे चउरासीति महकप्पसयसहस्साई से एगे महामाणसे अनंताओ संजूहाओ जीवे घयं चइत्ता उवरिल्ले माणसे संजूहे देवे उववजति से णं तस्थ दिव्याई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरइ विहरित्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं मवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइता पढमे सण्णिगो जीवे पञ्चायाति, से णं तओहिंतो उबट्टित्ता मझिल्ले माणसे संजूहे देवे उववजह से णं तत्य दिव्बाई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरइ विहरिता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव चइत्ता दोच्चे सण्णिगब्बे जीवे पञ्चायाति, से णं तओहितो अनंतरं उव्वट्टिता हेडिल्ले माणसे संजूहे देवे उपवाई से णं तत्थ दिव्याई भोगभोगाइ जाव चइत्ता तच्चे सण्णिग जीये पच्छायाति, से णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता उवरिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ से णं तत्थ दिव्वाई भोगभोगाइं जाव चइता चउत्थे सण्णिगो जीवे पञ्चायाति, से णं तओहिंतो अनंतर उव्यट्टित्ता मज्झिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ से णं तत्य दिव्वाई मोगभोगाई जाव चइता पंचमे सण्णिगब्भे जीवे पछायाति, से णं तओहिंतो अनंतर उव्वट्टित्ता हिछिल्ले माणसत्तरे संजूहे देवे उववजह से णं तत्य दिब्याई भोगभोगाई जाव चइताण्डे सण्णिगब्बे जीवे पञ्चायाति, से णं तओहितो अनंतरं उव्वट्टित्ता-बंभलोगे नापं से कप्पे पन्नते-पाईणपडीणायते उदीणदाहिणविच्छिपणे जहा ठाणपदे जाव पंच वडेंसगा पन्नत्ता तं जहा-असोगवडेंसए जाय पडिरूवा-से णं तत्य देवे उववजह से णं तत्थ दस सागरोवमाइं दिव्याई भोगभोगाइं जाव चइत्ता सत्तमे सण्णिगटभे जीवे पञ्चायाति, से णं तत्य नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धद्वमाणं राइंदियाणं वीतिक्कंताणं सुकुमालगभद्दलए मिउ-कुंडलकुंचिय-केसए मट्ठगंडतल-कण्णपीढए देवकुमारसप्पएमए धारए पयाति से णं अहं कासवा तए णं अहं आउसो कासवा कोमारियपव्यजाए कोसारएणं बंपचेरवासेणं अविद्धकण्णए चेव संखाणं पडिलभामि पडिलभित्ता इमे सत्त पउट्टपरिहारे तं जहा-एणेजज्स्स मल्लरामस्स मंडियस्स रोहस्स मारहाइस्स अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स गोसालस्सं मंखलिपुत्तस्स तत्य णंजे से पढमे पउट्टपरिहारे से णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया मंडिकुच्छिसि चेइयंसि For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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