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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० पगबई - १४/-10/६२० दसगुणकालए एवं तुल्लसंखेनगुणकालए पोग्गले एवं तुस्लअसंखेज्जगुणकालए वि एवं तुल्लअनंतगुणकालए वि जहा कालए एवं नीलए लोहियए हालिद्दए सुक्किलए एवं सुधिगंधे एवं दुब्भिगंधे एवं तित्ते जाव महुरे एवं कक्खडे जाव लुक्खे ओदइए भावे ओदइयस्स भावस्स भावओ तुल्ले ओदइए मावे ओदइयभाववइरित्तस्स भावस्स भावओ नो तुल्ले एवं ओवसमिए खइए खओवसमिए पारिणानिए सत्रिपाइए भावे सत्रिवाइयस्त भावस्स भावओ तुल्ले सनिवाइए भावे सन्निवाइयभाववइरित्तस्स भावस्स भावओ नो तुल्ले से तेणटेणं गोयमा एवं युबइ-मावतुल्लएभावतुल्लए से केणटेणं भंते एवं बुच्चइ-संठाणतुल्लए-संठाणतुल्लए गोयमा परिमंडले संठाणे परिमंडलस्स संठाणस्स संठाणओ तुल्ले परिमंडले संटाणे परिमंडलसंटाणवइरित्तस्स संठाणस्स संठाणआ नो तुले एवं व? तसे चउरंसे आयए समचउरंसे संठाणे समचउरांससंठाणवइरित्तस्स संठाणस्स संठाणओ नो तुल्ले एवं परिमंडलेवि एवं साई खुजे वामणे] हुंडे से तेणद्वेणं गोयमा एवं बुखइ-संठाणतुल्लए-संठाणतुलए ५२२-623 (६२१) भत्तपञ्चक्खायए णं भंते अणगारे मुछिए गिद्धे गढिए अज्झोववत्रे आहारमाहारेति अहे णं वीससाए कालं करेइ तओ पच्छा समुछिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने आहारमाहारेति हंता गोचमा भत्तपञ्चक्खायए णं अणगारे (मुच्छिए गिद्धे तं चेव आहारमाहारेति] से केणटेणं भंते एवं वुच्चइ-भत्तपच्चक्खायए णं [अणगारे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारमाहारेति अहे णं वोससाए कालं करेइ तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववत्रे आहारमाहारेति} गोयमा भत्तपन्नक्खायए णं अणगारे मुछिए गिद्धे गढिए तं चैव आहारमाहारेति ।५२३1-524 (६२२) अत्यि णं भंते लवसत्तमा देवा लवसत्तमा देवा हंता अस्थि से केपट्टेणं भंते एवं दुच्चइ-लवसत्तमा देवा लवसत्तामा देवा गोयमा से जहानामए केइ परिसे तरुणे जाच निउणसिप्पोगए सालीणं वा वीहीण वा गोधूमाण बा जवाण वा जवजवाण वा पक्काणं परियाताण हरियाणं हरियकंडाणं तिक्खणं नवपजणएणं असिअएणं पडिसाहरिया-पडिसाहरिया पडिसंखिविवा-पडिसंखिविया जाव इणामेव इणामेव त्ति कट्ट सत्त लवे लुएजाजदि णं गोयमा तेसिं देवाणं एवतियं कालं आउए पहुप्पते तो गं ते देवा तेणं चेय भवग्गहणेणं सिझंता [बुझंता मुचंता परिनिव्वायंता सव्वदुक्खाणं अंतं करेंता से तेणटेणं गोयमा एवं युच्चइ-लवसत्तमा देव लवसत्तमा देवा ।५२४१-525 (६२३) अस्थि णं मंते अनुत्तरोववाइया देवा अनुत्तरोक्वाइया देवा हंता अन्थि हरे केणडेणं मंते एवं युबइ-अनुत्तरोववाइया देव अनुत्तरोक्वाइया देवा गोयमा अनुत्तरोववाइयाणं देवाणं अनुत्तरा सद्दाअनुत्तरा वा अनुत्तरा गंधा अनुत्तरारसा अनुतरा फासा सेतेणद्वेणं गोयमा एवं बुच्चइ अनुत्तरोवाइया देवाअनुत्तरोक्वाइयादेवा, अनुत्तरोक्वाइयाणभंते देवाकेयतिएणंकमावसेसेणं अनुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववत्रा गोयमा जायतियं छट्टपत्तिए समणे निग्गंथे कामं निजरेति एवतिएणंकमावलेणं अनुत्तरोववाइयदेवत्ताएउववत्रा सेवं मंते सेवं तेत्ति।५२५/-526 .चोदसमे सते सत्तमो उद्देसो समत्तो. - अहमो- सो :(६२४) इमीसे णं भंते रयणप्पमाए पुढवीए सक्करप्पभाए य पुढवीए केवतिए अबाहाए For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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