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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सतं-१३, देसो- २८५ जीवा ओगाढा ।।८४१-485 (५८२) कहि णं पते लोए बहुसमे कहि णं भंते लोए सव्वविग्गहिए पन्नत्ते गोयमा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेहिल्लेसु खुडुगपयरेसु एत्थ णं लोए बहुसमे एत्य णं लोए सव्वविग्गहिए पत्रत्ते कहि णं भंते विग्गहविग्गहिए लोए पत्रत्ते गोयमा विग्णहकंडए एत्य गं विग्गहविग्गहिए लोए पन्नत्ते।४८५/-488 (५८३) किंसंटिए णं भंते लोए पनते गोपमा सुपइट्ठियसंठिए लोए पन्नत्ते-हेट्ठा विच्छिण्णे मझेसिंखिते उप्पिं विसाले अहे पलियंकसंठिएमझेवरवइरविग्गहिएउपिं उद्धमुइंगाकार-संठिए तंसि च णं सासयंसि लोगंसि हेढा विच्छिण्णंसि जाव उप्पि उद्धमुइंगाकारसंठियंसि उप्पण्ण-नाणदसणधरे अरहा जिणे केवली जीवे वि जाणइपासइ अजीवे विजाणइ-पासइ तओ पच्छा सिम्झइ बुन्झइ मुचइ परिनिब्बाइ सव्वदुक्खाणं) अंतं करेति एपस्स णं मंते अहेलोगस्स तिरिय- लोगस्स उड्ढलोगस्स य कयरे कवरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा] विसेसाहिया वा गोयमा सव्वत्थोवे तिरियलोए उड्ढलोए असंखेजगुणे अहेलोए विसेसाहिए सेवं भंते सेवंभंते ति।४८६।-487 तेरसमे सते चउत्थो उद्देसो समत्तो. -: पंच मो-उद्दे सो :(५८४) नेरइया णं भंते किं सचित्ताहास अचित्ताहारा मीसाहारा गोयमा नो सचित्ताहारा अचित्ताहारा नो मीसाहारा एवं असुरकुमारा पढमो नेरइयउद्देसओ निरवसेसो भाणियब्बो सेवं भंते सेवं भंतेत्ति।४८७)-488 तेरसमे सते पंचयो उदेसो सफ्तो. -: छ टो-उदे सो :(५८५) रायगिहे जाव एवं क्यासी-संतरं नेरइया उश्वनंति निरंतर नेरइया उववजंति गोचमा संतरं पि नेरइया उववजंति निरंतरं पि नेरइया उश्वनंति एवं असुरकुमारा वि एवं जहा गंगेये तहेव दो दंडगाजावसंतरं पिवेमाणिया चयंति निरंतरंपिवेमाणिया चयंति।४८८1-489 (५८६) कहिणं भंते चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमारारण्णो चपरचंचे नामं आवासे पत्रत्ते गोयमा जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेने दीवसमद्दे-एवं जहा बितियसए समाउद्देसए वतन्वया सन्चेव अपरिसेसा नेयव्वा तीसे णं चमरचंचाए रायहाणीए दाहिणपञ्चत्यिमे णंछक्कोडिसए पणपन्नं च कोडीओ पणतीसं च सयसहस्साई पन्नासं च सहस्साइं अरुणोदगसमुदं तिरियं वीइवइत्ता एस्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चमरचंचे नामं आवासे पत्रत्तेचउरासीई जोवणसहस्साई आयामविक्खंभेणं दो जोयणसयसहस्सा पनद्धिं च सहस्साई छच्च बत्तीसे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेणं से णं एगेणं पागारेणं सव्वओ समंता संपरिक्खत्ते से णं पागारे दिवढं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं एवं चमरचंचाए रायहाणीए वत्तव्यया भाणियव्वा समाविहूणाजाव चत्तारि पासायपंतीओ चमरे णं भंते असुरिंदै असुरकुमारराया चमरचंचे आवासे क्सहिं उवेति नो इणद्वे समढे से केणं खाई अटेणं भंते एवं बुच्चइ-चपरचंचे आवासे चमरचंचे आवासे गोयमा से जहानामए-इहं मणुस्सलोगंसि उवगारियलेणाइया उजाणियलेणाइ वा निजाणियलेणाइ वा धारावारियलेणाइवा तत्थ णं बहवे मणुस्सा य मणुस्सीओ य आसयंति सयंति [चिट्ठति निसीयंति तुयति हसंति रमंति ललंति कीलंति कित्तंति मोहेति पुरा पोराणाणं सुविण्णाणं सुपरवंताणं सुमाणं कडाणं कम्माणं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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