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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्तमं सतं - उद्देसो-९ तस्सेव भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पचक्खानि जावजीवाए [जावं मिच्छादंसणसलं पचखामि जावज्जीवाए सव्वं असण- पाण- खाइम साइमं चउन्विहं पि आहारं पाक्खामि जावजीवाए जंपि य इमं सरीरं इवं कंतं पियं जाव मा णं वाइयपित्तिय-सेंभिय-सण्णिवाइय विविहा रोगा का परीसह वसागा फुसंतु त्ति कट्टु । एवं पि णं चरिमेहिं ऊसासा-नीसासेहिं बोसिरिस्सामि ति कट्टु सण्णाहपट्टे मुयइ मुइत्ता समुद्धरणं करेइ करेता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते आणुपुव्वीए कालगए १४१ तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्तुवस्स एगे पियबालवयंसए रहमुसलं संगामं संगामेमाणे एगेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कार परक्कमे अधारणिजमिति कट्टु वरुणं नागनत्यं रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खममाणं पासइ पासित्ता तुरए निगिण्हइ निगिन्हित्ता जहा वरुणे जाव तुरए विसज्जेति पडसंथारगं दुरुहइ दुरुहित्ता पुरत्याभिमुहे संपलियंकनिसणे करयल- परिगहिंय जाव अंजलि कट्टु एवं वयासी- जाइ णं भंते मम पियबालवयंसस्स वरुणस्स नागनत्यस्स ससीलाई वयाई गुणाई वेरमाणाइं पञ्चक्खाण-पोसहोववासाई ताइ णं ममं पि भवंतुति कट्टु सण्णाहपट्टे मुयइ मुत्ता समुद्धरणं करेइ करेत्ता आणुपुवीए कालगए तए णं तं वरुणं नागनत्यं कालयं जाणित्ता अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं दिव्ये सुरभिगंधोदगवासे बुट्टे दसद्धवण्णे कुसुमे निवालिए दिव्वे य गीय-गंधव्वनिनादे कए या वि होत्या तए णं तस्स वरुणस्स नागनतुयस्स तं दिव्यं देविड्ढि दिव्यं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं सुणित्ता य पासित्ता य बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूचेइ एवं खलु देवाणुपिया बहवे मगुस्सा अण्णयरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चैव पहया समाणा कालामासे कालं किया अण्णयरेसु देवलोएसु उववत्तारी भवंति । ३०२१-302 (३७६) वरुणे णं भंते नागनत्तुए कालमासे कालं किञ्च्चा कहिं गए कहि उवचन्ने गोयमा सोहम्पे कप्पे अरुणाभो विमाणे देवत्ताए उववत्रे तत्य णं अत्थेण तियाणं देवाणं चत्तारि पलिओचपाई ठिती पत्रत्ता तत्यं णं वरुणस्स वि देवरस चत्तारि पनि ओवमाइं ठिती पत्रत्ता से णं भंते वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं वइत्ता कहिं गच्छिहिति कहिं उववज्जिहिति गोयमा महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुविहिति परिनिव्याहिति सब्वदुक्खाणं अंतं करेहिति वरुणस्स णं भंते नागनत्तुपस्स पियबालवयंसए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उववत्रे गोयमा सुकुले पञ्चायाते से णं भंते तओहिंतो अनंतरं उब्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिति कहिं उववज्जिहिति गोयमा महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाय अंतं काहिति सेवं भंते सेवं भंते त्ति १३०३/-303 सत्तमे सते नवमी उसी समतो -: दस मोउ द्दे सो : (३७७) तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्या वण्णओ गुणसिलए चेइएवणओ जाव पुढविसिलापट्टओ तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति तं जहा कालोदाई सेलेदाई सेवालोदाई उदए नामुदए नम्मुदए अण्णवालए सेलवालए संखावालए सुहत्थी गाहावई तए णं तेसिं अन्नउत्थियानं अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सण्णिविद्वाणं सण्णिसण्णाणं अयमेयारूचे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था एवं खलु For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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