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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० पापाई - 0/-1९/३७५ गय-रह-पवर-(जोहकलियं चाउरंगिणि सेणंसण्णाहेह) सण्णाहेता मम एयमाणतियंपञ्चप्पिणहतए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पडिसुत्ता खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयंजाव चाउग्धंटे आसरहंजुत्तामेव उवट्ठाति हय-गय-रह-जाव सण्णाति सण्णाहेत्ता जेणेव वरुणे नागनतुए तेणेव उवागळंति उवागच्छित्ताजावतमाणत्तिय पच्चप्पिणंति तए णं से वरुणे नागनत्तुए जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता मज्जणधरं अणुप्पविसइ अणुपविसित्ता हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिएसण्णद्ध-बद्ध-वम्मियकलए सकोरेंटमल्ल दामेणछत्तेणंधरिजमाणेणं अणेगगणनायग-दंडनायंग-राईसर सलवर-माइंबिय कोडुंबिय-इम-सेहि-सेमावइसत्यवाहदूय-संघिपालसद्धिं सपरिवुडे मङ्गणघराओ पडिनिक्खमति पडिनिक्खमिता जेणेव बाहिरिया उवहाइणसाला जेणेव चाउग्धंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता चाउग्धं आसरहं दुरुइह दुरुहित्ता हय-गय-रह[पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं] संपरिवुडे पहयाभडचडगरविंदपरिखिसे जेणेव रहमुसले संगामे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छितारहमुसलं संगामं ओयाएतएणं से वरुणे नागनतुए रहमुसलं संगाम ओवाए समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ-कप्पति मे रहमसलं संगामं संगापेमाणस्सजे पुचि पहणइसे पडिहणित्तए अवसेसे नो कप्पतीतअयमेयारूवं अभिग्गहं अमिगेण्हइ अभिगेहेत्ता रहमुसलं संगाम संगामेति तए णं तस्स वरुणस्स नागनतुयस्स रहमुसलं संगाम संगामेमाणस्स एगे पुरिसे सरिसए सरित्तए सरिव्वए सरिसभंडमत्तोवगरणे रहेणं पडिरहं हव्वमागए तए णं से पुरिसे वरुणं नागनत्तुयं एवं वदासी पहण मो वरुणा नागनत्तुया पहण मो वरुणा नागनतुया तएणं से वरुणे नागनत्तुएतपुरिसं एवं वदासी-नोखलुमे कप्पइ देवाणुप्पिया पुचिअहयस्स पहणित्तए तुमचेवणं पुब्विपहणाहितएणंसे पुरिसे वरुणेणं नागनत्तुएणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते [रुटे कुविए चंडिक्किए] मिसिमिसेमाणे धjपरामुसइ परामुसित्ता उसुंपरामुसइ परामुसित्ता ठाणं ठाति ठियाआययकण्णाययं उसुकरेइ करेत्ता यरुणं नागनत्तुयं गाढप्पहारीकरेइ तए णं से वरुणे नागनत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसइ परामुसित्ता उसु परामुसइ परामुसित्ता आययकण्णाययं उसुं करेइ करेत्ता तं पुरिसं एगाहचं कूडाहचं जीवियाओ ववरोवेइ तए णं से वरुणे नागनत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्यामे अबले अवीरिए अपरिसककारपरक्कमे अधारणिनमिति कट्ट तुरए निगिण्हइ निगिम्हिता रहं परावत्तेइ परावत्तेता रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खमति पडिनि- कखमित्ता एगंतमंतं अवक्कमइ अवक्कमित्ता तुरए निगिण्हइ निगिहित्ता रहं ठवेइ ठवेता रहओ पचोरूहइ पच्चोरूहित्ता तुरए मोएइ मोएता तुरए विसजेइ विसओत्ता दबसंथारगं संघरइ संथरित्ता दलसंधारगं दुरुहइ दुरिहित्ता पुरत्यापिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयलं [परिग्गहिंय दसनहं सिरसावतंमत्यए अंजलिं कट्टएवं वयासी _ नमोत्युणं अरहंताणं भगवंताणंजाव सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमोत्युण सपणस्स भगवओ महावीरस्स आदिगरस्स जाव सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स चंदामि णं भगवंतंतत्यगयं इहगए पासउ मे से भगवंतत्यगए इहगयं ति कह वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी पुचि पिणं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए यूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए एवं जाव धूलए परिग्गहे पच्चक्खाए इयाणि पिणं अहं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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