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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्तमं सतं - उद्देसो १२५ कारसंठिए तंसि च णं सासयंप्ति लोगसि हेट्ठा विच्छिण्णंसि जाव उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठियंसि उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिणे केवली जीवे वि जाणइ-पासइ अजीवे वि जाणइ-पासइ तओ पच्छा सिज्झई बुज्झइ मुखइ परिनिव्चाइ सव्वदुक्खाणं अंत करेइ।२६०1-260 (३३०) समणोवासगस्स णं भंते सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स तस्स णं भंते किं इरियावहिया किरिया कजइ संपराइया किरिया कन्जइ गोयमा नो इरियावहिया किरिया काइ संपराइया किरिया कजइ से केणद्वेण भंते एवं बुच्चइ-नो इरिवावहिया किरिया कज्जइ संपराइया किरिया कज्जइ गोयमा सपणोवासयस णं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छामाणस्स आया अहिगरणी भवइ आयाहिगरणंवत्तियं च णं तस्स नो इरियावहिया किरिया कज्जइ संपराइया किरिया कन्जइसे तेणद्वेणं जाव संपराइया।२६१1-281 (३३१) समणोवासगस्सणं भंते पुब्यापेव तसपाणसमारंभे पचक्खाए भवइ पुढविसमारंभे अपचक्खाए भवइ से य पुढविं खणमाणे अण्णयरं तसं पाणं विहिसेजा से णं भंते तं वयं अतिघरति नो इणढे समटे नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति समणोवासगस्स णं भंते पुवामेव वणप्फसमारंभे पञ्चक्खाए से य पुढवि खणमाणे अण्णयरस्स रुक्खस्स मूलं छिदेज्जा से णं भंते ते वयं अतिचरति नो इणट्टे नो खलु से तस्स अतिवायाए आउटृति ।२६२1262 (३३२) सपणोवासए णं भंते तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असणपाणखाइप-साइमेणं पडिलाभेमाणे किं लब्भइ गोयमा समणोवासए णं तहाम्वं समणं वा [माहणं वा फास-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइसेणं पडिलाभेमाणे तहारूवस्स समणस्स वा पाहणस्स वा समाहिं उप्पाएति समाहिकारए णं तामेव समाहिं पडिलभइ समणोवासए णं भंते तहालवं समणं या माहणं वा फासु-एसणिजेणं असण पाण-खाइप-साइमेणं पडिलाभेमाणे किं चयति गोयमा जीवियं चयति दुचयं चयति दुक्करं करेति दुल्लहं लहइ बोहिं बुज्झइ तओ पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति।२६३1-203 (३३३) अस्थि णं मंते अकस्मस्स गती पत्रायति हंता अस्थि कहण्णं भंते अकम्मस्सगती पन्नायति गोयमा निस्संगयाए निरंगणयाए गतिपरिणामेणं बंधणछेदणयाए निरिंधणयाए पुचप्पओगेणं अकम्मस्स गती पन्नयाति कहण्णं भंते निस्संगयाए निरंगणयाए गतिपरिणामेणं अकम्मस्स गती पत्रायति से जहानापए केइ पुरिसे सुक्कं तुंबं निच्छिडं निरूयहयं आणुपुबीए परिकम्मे माणे-परिकम्मेमाणे दस्मेहि य कुसेहिय वेढेइ वेढेत्ता अट्ठर्हि मट्टियालेवेहिं लिंपइ लिंपित्ता अण्हे दलयति भूति-भूर्ति सुक्कं समाणं अत्याहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज़ा से चूर्ण गोयमा से तुंचे तेसिं अट्ठण्हं पट्टियालेवाणं गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए सलिलतलमतियइत्ता अहे धरणितलपइट्ठाणे भवइ हंता मवइ अहे णं से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं परिक्खाएणं धरणितलमतिवइत्ता उप्पिं सलिलतलपइट्ठाणे भवइ हंता भवइ एवं खलु गोयमा निस्संगयाएए निरंगणयाए गतिपरिणामेणं अकम्मस्स गती पत्रायति कहण्णं भंते बंधणछेदणयाए अकम्मस्स गती पत्रायति गोयमा से जहानापए कलसिंबलिया इ वा मुग्गसिंबलिया इ वा माससिंवलिया इवा सिंबलिसिंबलिया इवा एडमिजिया इवा उण्हे दिन्ना सुक्का समाणी फुडिता णं एगंतमंतं गच्छइ एवं खलु गोयमा बंधणछेदणयाए अकम्मस्स गती पत्रायति कहणं मंते निरिधणयाए अकम्मस्स गती पत्रायति गोयमा से जहानामए धूमस्स इंधणविप्पमुक्कस्स उड्ढं For Private And Personal Use Only
SR No.009731
Book TitleAgam 05 Vivahapannatti Angsutt 05 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages514
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size10 MB
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