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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयाओ - पइ.-२३२ पनविनंति परूविनंति दंसिर्जति निदंसिर्जति उवदंसिजंति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरण-करण-परूवणया आधविनति पत्रविज्जति परूविनति देसिज्जति निदसिजति उवदंसिजति सेत्तं दिविवाए सेत्तं दुवालसंगे गणिपिडगे ।१४७।-147 (२३३) इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं तीते काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंत संसारकतारं अनुपरियट्ठिसु इच्चेतं दुवालसंग गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरिवति इच्चत्तं दुवालसंग गणिपिडगं अनागए काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकतारं अनुपरियट्टिस्संति इचेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विइवइंसु इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पड़प्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए आराहेता चाउरंतं संसारकंतारं विइवयंति इचेत्तं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले अनंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरतं संसारकतारं विवइस्संति दुवालसंगे णं गणिपिडगे णं कयाइ नासी णं कयाइ नस्थि न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवति य भविस्सति य धुवे नितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे से जहाणामए पंच अस्थिकावा न कयाइ न आसी न कयाइ नस्थि न कयाई न भविस्संति भुपिं च भवति य भविस्संति य धुवा नितिया सासया अक्खया अव्वया अवट्टिया निच्चा एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ न आसी न कयाइ नत्येि न कयाइन भविस्सइ भुविं च भवति य भविस्सइ य धुवे नितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे एस्थ णं दुवालसंगे गणिपिडगे अनंताभावा अनंताअभावा अनंताहेऊ अनंताअहेऊ अनंता कारणा अनंताअकारणा अनंताजीवा अनंताअजीवा अनंताभवसिद्धिया अनंता अभवसिद्विया अनंतासिद्धा अनंताअसिद्धा आपविजंति जाव उवदंसिर्जति ।१४८|-148 (२३४) दुवे रासी पन्नत्ता तं जहा-जीवरासी अजीवरासी य अजीवरासी दुविहे पन्नते तं जहा-रूविअजीवरासी अरूविअजीवरासी य से किं तं असविअजीवरासी अरूविअजीवरासी दसविहे पत्ते तं जहा-धम्मस्टिकाए धम्मस्थिकायस्सदेसे धम्मत्थिकायस्सपदेसा अधप्पस्थिकाए अधम्मस्थिकायस्सदेसे अधम्मस्थिकायस्सपदेसा आगासत्यिकाए आगासस्थिकायस्सदेसे आगासस्थिकायस्सपदेसा अद्धासमए जाव,- से किं तं अनुत्तरोववाइआ अनुत्तरोववाइओ पंचविहा पन्नत्ता तं जहा-विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजदित-सबसिद्धिया सेत्तं अनुत्तरोबवाइआ सेतं पंचिदियसंसारसमावण्णा- जीवरासी, दुविहा नेरइया पन्नता तं जहापजता य अपजत्ता य एवं दंडओ भाणियव्यो जाव वेमाणियत्ति इमीते णं रयणप्पभाए पढवीए केवइयं ओगाहेत्ता केवइया निरया पन्नता गोयमा इसीसे णं रवणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एग जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वजेत्ता मज्जे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से एस्य णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं तीसं निरयावाससयसहस्सा भवंतीति मक्खायं तेणं नरया अंतो वट्टा बाहिं चउरंगा अहे खुरप्पसंठाण-संठिया निबंधयारतमसा बवायगह-चंद-सूर-नक्खरा-जोइसपहा भेद-वसा-पूयरूहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमभिगंधा काउअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा निरया असुभातो नरएसु वेयणाओ एवं सत्तवि भाणियव्वाओ जं जासु जुजइ- १४९-१।-149-1 For Private And Personal Use Only
SR No.009730
Book TitleAgam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages82
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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