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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५० www.kobatirth.org समवाओ पइ./२१५ बागरणं विवागसुए दिट्टिवाए से किं तं आवारे आयारे णं समणाणं निग्गंधाणं आयार - गोयरविणय वेणइय द्वाण गमण-चंकमण- पमाण- जो गजुंजण भासा समिति-गुत्ती-सेजोवहिभत्तपाणं-उग्गमउष्पायणएसणाविसोहि सुद्धासुद्धग्गहण-वय-नियम-तवोवहाण-सुष्पसत्यमाहिइ से समासओ पंचविहे प. तं. नाणायारे दंसणावारे चरित्तायारे तवायारे वीरि- यायारे आयारस णं परिता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेजाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेजा सिलोगा संखेज्जाओ नित्तीओ से णं अंगढाए पढने अंगे दो सुयक्खंधा पणवीसं अज्झयणा पंचासीई उद्देसणकाला पंचासीई समुद्देसणकाला अडारस पयसहस्साई पदग्गेणं संखेजा अक्खरा अनंता गमा अनंता पञ्चवा परिता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिणपन्नत्ता भावा आधविनंति पत्रविचंति परूविचंति दसिजति निदंसिज्र्ज्जति उवदंसिजति से एवं आया एवं नाया एवं विग्णाया एवं चरण- करण-परूवणया आधिविजति पनविजति परूविजति दंसिजति निदंसिजति उवदंसिजति सेतं आयारे ।१३६ | -136 (२१६ ) से किं तं सूयगडे सूयगडे णं ससमया सूइति परसमया सूइजंति ससमयपरसमया सूइचंति जीवा मुइज्जति अजीवा सूइज्जति जीवाजीवा सूइजंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति रायगडे णं जीवाजीव- पुण्ण-पावासव-संवर-निज्जरबंध मोक्खावसाणा पयस्था सूइति सममाणं अचिरकालपव्वइयाणं कसमय मोह-मोह-मइमोहियाणं संदेहजाय-सहजबुद्धि-परिणाम-संसइयाणं पावकर -मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं आसीतस्स किरियावादितस्स चउरासीए अकिरियवाईणं सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं बत्तीसाए वेणइयवाईणं-तिन्हं तेसड्डाणं अण्णदिडियसयाणं वूहं किया ससपए ठाविति नाणादिट्टंतवयणनिस्सारं सुदु दरिसयंता विविहवित्थराणुगम - परमसदभाव - गुण - विसिट्टा पोक्खपहोयारगा उदारा अन्नाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूता सेवाणा चेव सिद्धसुगइधरुत्तमस्स निक्खोभनिप्पकंपा सुत्तत्था सूयगडस्स णं परिता वावणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेजाओ निजुतीओ से णं अंगट्टायाए दोघे अंगे दो सुवक्बंधा तेवीसं अज्झणा तेत्तीस उद्देसणकाला तेतीसं समुद्देसणकाला छत्तीसं पदसहस्साइं पचग्गेणं संखेजा अक्खरा अनंता गमा अनंता पजवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कड़ा निबद्धा निकाइया जिणपत्रत्ता भावा आधविनंति पत्रविनंति परूविज्जति दंसिद्धंति निदंसिज्जुंति उवदंसिजंति से एवं आया एवं नाया एवं विष्णाया एवं चरण-करण- परूवणया आघविजति पत्रविचंति परूविनंति दंसिजति निदंसिजति उवदंसिजति सेतं सूयगडे | १३७ -137 (२१७ ) से किं तं ठाणे ठाणे णं ससमया ठाविज्जति परसमया ठाविति ससमयपरसमया ठाविचंति जीवा ठाविनंति अजीवा याविति जीवाजीदा ठाविति लोगे ठाविजंति अलोगे ठाविति लोगालोगे ठाविजति ठाणे णं दव्व-गुण- खेत्त-काल-पञ्जव पयत्याणं - ११३८-११-138-1 - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।।६२॥-1 (२१८) सेला सलिला य समुद्द-सूरभवणविभाण आगर नदीओ निहओ पुरिसजाया सराय गोता य जोइसंचाला (२१९) एक्कविहवत्तव्वयं दुविहवत्तव्ययं जाव दसर्विहवत्तव्वयं जीवाण पोग्गलाण य लोगडाइणं च परूवणया आधविजति ठाणस्स णं परित्ता वायणा । संखेजा अनुओगदारा For Private And Personal Use Only
SR No.009730
Book TitleAgam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages82
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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