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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदण्णग समयाओ संखेनाओ पडिवत्तीओ संखेजा वेढा संखेना सिलोगा संखेजाओ निजत्तीओ संखेजाओ संगहणीओ से गं अंगद्वाचाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अग्झयणा एककवीसं उद्देसणकाला एक्कासं समुद्देसणकाला वावतरं पवसहस्साई पयग्गेमं संखेज्जा अखरा अनंता गमा अनंता पनवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिणपन्नत्ता भावा आधविनंति पत्रविनंति परविशंति दंसिर्जति निदंसिन्नति उवदंसिजंति से एवं आया एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरण करण-परूवणया आधविनति [पत्रविजति परुविनति दंसिञ्जति निसिञ्जति उचदंसिजति सेत्तं ठाणे ।१३८1-138 (२२०) से किं तं समवाए समवाए णं ससमया सूइज्जति परसमया सूइजंति ससमयपरसमया सूइजंति जीवा सूइचंति अजीया सूइजेति जीवाजीवा सूइज्जति लोगे सूइजंति अलोगे सूइज्जति लोगातोगे सूइजति समवाए णं एकादियाणं एगत्थाणं एगुत्तरियपरिवुड्ढीय दुवालसंगस्स व गणिपिडगस्स पल्लवगे समणुगाइजइ ठाणगसयस्स वारसविहवित्थरस्स सुयनाणस्स जगजीवहियरस भगवओ समासणं समायारे आहिजति तत्थ च नाणाविहप्पगारा जीवाजीवा व वणिया वित्यरेण अवरे वि य बहुविहा विसेसा नएग-तिरिय-मणुय सुरगणाणं अहारूस्सास - लेस - आवास - संख - आयायप्पमाण उववाय-चरण-ओगाहणोहि-वेयण-विहाण-उवओगजोग इंदेिय कसाय विविहा य जीवजोणी विक्खंभुस्सेह परिरय-प्पसाणं विधिविसेसा य मंदरादीणं महीधराणं कुलगर-तिथिगए-गणहराणं समत्तभरहाहिवाण चक्कीणं चेव चक्कहरहलहराणं य वाशाणं य निगमा य समाए एए अण्णे य एवमादित्थ वित्यरेणं अत्था समाज-सिजेंति समवायस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेजाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेचा शिलोगा संखेनाओ निजीओ संखेजाओ संगहणीओ से गं अंगवाए चउत्थे अंगे एगे अज्झयणे एगे सुयक्खंधे एगे उद्देसणकाले एगे समुद्देसणकाले एगे चोयाले पदसयसहस्से पदग्गेणं संखेञ्जाणि अक्खराणि अनंता गमा अनंता पञ्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासवा कडा निवन्द्रा निकाइया जिणपत्रत्ता भावा आधविजंति पन्नविनंति परूविजंति दंसिजति निदंसिजेंति उवदंसिर्जति सेत्तं समवाए ।१३९|-139 (२२१) से किं तं वियाहे वियाहे णं ससमया वियाहिजंति परसपया वियाहिनंति ससमयपरसमया वियाहिजंति जीवा विवाहिजंति अजीवा वियाहिजंति जीवाजीवा वियाहिजति लोगे वियाहिजइ अलोगे वियाहिजइ लोगालोगे वियाहिजइ वियाणे णं नाणाविह-सुरनरिंद-रापरिसि-विविहसंसइच-पुच्छियाणं जिणेणं वित्थरेण भासियाणं दब्व-गुण-खेत्त-कालपञ्जव - पदेस -परिमाण जहत्थिभाव-अनुगम-निक्खेव-नवप्पमाण-सुनिट-पोवककम-विविहप्पगार-पागङ-पयंसियाणं लोगालोग-पगासिवाणं संसारसमुद्द-रूंद-उत्तरण-समस्याणं सुरपति-संपजियाणं भविय-जणपय-हिययाभिंनदयाणं तमरव-विद्धंसनाणं सुदिटुं-दीवभूय- ईहामतिबुद्धि-बद्धनाणं छत्तीससहस्समणूणायणं वागरणाणं दंसणा सुयत्थ बहुविहप्पागारा सीसहिवस्थाच गुणहत्था वियाहरस णं परिता वारणा संखेचा अनुओगदारा संखेजाओ पडिवत्तीओ संखेजा वेढा संखेडा सिलोगा संखेनाओ निजीओ संखेजाओ संगहणीओ से णं अट्ठयाए पंचमे अंगे एगे सुयक्खंधे एगे साइरेगे अज्झयणसते दस उद्देसगसहस्साई दस समुद्देसगसहस्साई छत्तीसं वागरणसहस्साई चरासीई पयसहस्साई पघग्गेणं संखेज्जाई अक्खराइं अनंता गमा For Private And Personal Use Only
SR No.009730
Book TitleAgam 04 Samavao Angsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages82
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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