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________________ श्री ममल पाहुड़ जी विषयवस्तु संज्ञा ४ आहार, भय, मैथुन, परिग्रह । - - चतुष्टय ४ अनंत दर्सन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख, अनंत बल । अर्थ ५ - उत्पन्न अर्थ, हितकार अर्थ, सहकार अर्थ, जान (ज्ञान) अर्थ, पय अर्थ । तीन अर्थ की महिमा - १. उत्पन्न अर्थ - आसा विली न्यान उत्पन्न, अस्नेह विली दर्सन उत्पन्न, गारव विली दान उत्पन्न । - - २. हितकार अर्थ- आलस विली लाभ उत्पन्न, परपंच विली भोग उत्पन्न, विभ्रम विली उपभोग उत्पन्न । ३. सहकार अर्थ - लाज विली वीर्ज उत्पन्न, लोभ विली संमिक्त उत्पन्न, भय विली चारित्र उत्पन्न । दिस्टि १४ दिस्टि, इस्टि, रिस्टि, रस्टि, सिस्टि, सस्टि, उत्पन्न इस्टि, सहकार इस्टि, अवकास इस्टि, समय इस्टि, अन्मोद इस्टि, षिपक इस्टि, मुक्ति इस्टि, सुष इस्टि । दिति १४, नदी १४ - - गम्य अगम्य दिप्ति - गंगा, सुयं ध्रुव दिप्ति सिंधु, हितकार रमन दिप्ति रोहित, क्रांति रमन दिप्ति हरिकांता, सित सांति दिप्ति सीता, सित उत्पन्न सांति दिप्ति सीतोदा, न्यान दिप्ति नारी, न्यान अर्क सुभाव दिप्ति नरकान्ता, सुयं रूप्यकूला, कमल उत्पन्न रक्ता, रमन कमल रमन - - रमन सुभाव दिप्ति स्वर्णकूला, रुचि प्रिये कांति दिप्ति कांति दिप्ति रोहितास्य, रमन कमल तत्काल दिप्ति दिप्ति रक्तोदा, सहकार रमन सहजोपनीत दिप्ति सिद्धि रमन १४ - दिस्टि रमन, श्रुत रमन, स्वाद रमन, सुर्य अस्कंध रमन, सिधि रमन, सहज रमन, मन गुप्ति रमन, वैन गुप्ति रमन, कांति गुप्ति रमन, उत्पन्न रमन, आर्ध रमन, सुयं षिपक रमन, साता रमन औकास, न्यान अनंत रमन । - - - - हरित । २३ क्र. १. २. ३. रमण नंद नंद आनंद चिदानंद सहजानंद ४. परमानंद ५. पदवी सतक्षरी तारण पंथ अर्थात् मोक्षमार्ग की आध्यात्मिक साधना पद्धति का विधान आचार सम्ययस्व रंज दर्शनाचार आज्ञा उत्पन्न भय चिपक ज्ञानाचार वेदक हितकार अमिय बीर्याचार उपशम सहकार वैदिप्ति मन:पर्यय तपाचार क्षायिक विन्यान जिन सिद्ध केवल चारित्राचार शुद्ध जिन जिनय जिननाथ विशेष- श्री गुरु तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज द्वारा विरचित श्री भय घिपनिक ममलपाहुड़ जी ग्रंथ के ६७ वें पदवी फूलना के आधार पर यह पदवी सतक्षरी प्रस्तुत की गई है। श्री ठिकानेसार में भी इसका उल्लेख है। यह तारण पंथ अर्थात् मोक्षमार्ग की आध्यात्मिक साधना पद्धति का विधान है, जो श्री गुरू तारण स्वामी ने दिया है। यहाँ विशेष बात यह है कि अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु यह पाँच पद परम इष्ट हैं। यह देव के गुण पाँच पद हैं जो पूज्यता की अपेक्षा हैं तथा यह उपरोक्त पाँच पदवी साधना की अपेक्षा से हैं। श्री गुरुदेव स्वयं आत्म साधक थे, उन्होंने इस पदवी सतक्षरी के अनुसार आध्यात्मिक आत्म साधना का वर्णन श्री ममलपाहुड़ जी ग्रंथ के अनेक फूलनाओं में तथा श्री श्रावकाचार जी, श्री न्यान समुच्चयसार जी ग्रंथ में विशेष रूप से किया है, जो सुधीजनों द्वारा चिंतन-मनन योग्य विषय है। यह अपूर्व साधना पद्धति है जो हमें अपने आत्म कल्याण के मार्ग में दृढ करते हुए सिद्धि और मुक्ति को प्राप्त करने में साधन है। इसकी विशेष शोध-खोज हमें अपने मार्ग का बोध कराने के साथ-साथ सभी अर्थों में हितकारी होगी। पदवी उपाध्याय मति आचार्य श्रुत साधु अवधि अरिहंत ज्ञान · श्री तारण तरण अध्यात्मवाणी जी ך ध्यान ४ आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान । - आर्त ध्यान के ४ भेद - इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, पीड़ा चिंतवन, निदान बन्ध । हिंसानंदी, मृषानंदी, चौर्यानंदी, परिग्रहानंदी | रौद्र ध्यान के ४ भेद आज्ञा विचय, अपाय विचय, विपाक विचय, संस्थान धर्म ध्यान के ४ भेद विचय | शुक्ल ध्वान के ४ भेद पृथकत्व वितर्क वीचार, एकत्व वितर्क वीचार, सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति, व्युपरत क्रिया निवृत्ति । लब्धि ९ केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, · -
SR No.009713
Book TitleAdhyatma Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
PublisherTaran Taran Jain Tirthkshetra Nisai
Publication Year
Total Pages469
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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