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________________ (१४ ) वकता कहा है। अतः डॉ. साहब की यह धारणा कि 'वक्रोक्तिजीवित' की सुवादिवक्रता से प्रारम्भ होने वाली कोई कारिका होनी चाहिये पूर्णतया भ्रान्तिमूलक है । अतः इस आधार पर यह स्वीकार कर लेना कि अभिनव ने कुन्तक की बात का उल्लेख न कर किसी अन्य के अभिमत को प्रस्तुत किया हैसमीचीन नहीं है। ( ४ ) इनके अतिरिक्त रुय्यक ने 'अलङ्कारसर्वस्व' में ध्वनि के विषय में विभिन्न प्राचार्यों के अभिमतों का उल्लेख करते हुए पहले वक्रोक्तिजीवितकार और भट्टनायक के मतों का उल्लेखकर ध्वनिकार का मत बताया है और उसके बाद व्यक्तिविवेककार का मत प्रतिपादित किया है।' इस विषय में कालानुक्रम का निर्देश करते हुए जयरथ ने कहा है-'ध्वनिकारान्तरभावी व्यक्तिविवेककार इति तन्मतमिह पश्चानिर्दिष्टम् । यद्यपि वक्रोक्तिजीवितहृदयदर्पणकारावपि वनिकारान्तरभाविनावक, तथापि तो चिरन्तनमतानुयायिनावेवेति तन्मतं पूर्वमेवोद्दिष्टम् ।'२ रुय्यक और जयरथ द्वारा यहाँ वक्रोक्तिजीवितकार का हृदयदर्पणकार के पूर्व उल्लेख भी इस बात का समर्थक है कि या तो कुन्तक भट्टनायक के भी पूर्ववर्ती थे अथवा उनके समसामयिक थे। और इससे भी कुन्तक की अभिनव से पूर्ववर्तिता ही सिद्ध होती है। आचार्य अभिनव तथा कुन्तक का कालनिर्धारण जैसा कि अभिनव के अपने तीन प्रन्थों में दिए गए काल के आधार पर डॉ० कान्तिचन्द्र पाण्डेय ने अपने शोधप्रबन्ध 'अभिनगुप्त' में उनका साहित्यिक कृतित्वकाल ९९०-९१ ईसवी से १०१४-१५ ईसवी तक निर्धारित कर उनका जन्मकाल ९५. और ९६ ० ई० के बीच निर्धारित किया है, स्पष्ट रूप से उसके २५ या ३० वर्ष पूर्व भी कुन्तक का जन्मकाल मान लिया जाय तो उनका जन्म समय लगभग ९२५ ईसवी के आसपास स्वीकार किया जा सकता है । साथ. ही इस काल का पौर्वापर्य राजशेखर के काल से भी पूर्ण सामञ्जस्य रखता है। जैसा कि रचनाक्रम महामहोपाध्याय डॉ. मिराशी ने निर्धारित किया है उसके अनुसार 'बालरामायण' का रचनाकाल ९१० ई. के आस-पास ही पड़ेगा। क्योंकि सबसे पहली रचना मिराशीजी ने 'बालरामायण' को ही स्वीकार किया है। तदनन्तर बालभारत, कर्पूरमञ्जरी, विद्धशालमजिका और काव्यमीमांसा १. द्रष्टव्य अलं० स० पृ० ९-१६ । २. विमशिनी १० २१५॥
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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