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________________ : ( १३ ) 3 डॉ० डे', डॉ० राघवन तथा भारतरत्न म० म० डॉ० काणे महोदय । डॉ० शंकरन का तर्क है कि 'अभिनवगुप्त ने जो 'अन्यैरपि सुबादिवकता' में 'अन्येः' कहा है, वह कुन्तक के लिए ही कहा गया है ऐसा हम इस लिए नहीं स्वीकार कर सकते क्योंकि वक्रोक्तिजीवित में हमें 'सुबादिवकता' शब्दों से कोई कारिका नहीं प्राप्त होती ।" निश्चित ही डॉ० साहब का यह कथन बहुत विचार के अनन्तर कहा गया प्रतीत नहीं होता क्योंकि जैसा श्रगले विवेचन से स्पष्ट होगा अभिनव ने 'सुवादिवक्रता' के द्वारा किसी कारिका के आरम्भ की ओर निर्देश नहीं किया बल्कि विषय की ओर किया है। अभिनव उक्त स्थल पर नाटयशास्त्र की - ' नामाख्यातनिपातोपसर्ग ० ' ( ना० शा ० १४१४ ) आदि कारिका में आये हुए विभक्ति पद की व्याख्या कर रहे हैं । स्पष्ट रूप से उनका विवेचन यहाँ आनन्द से प्रभावित है । इसीलिए उन्होंने—'विभक्तयः सुप्तिवचनानि' इस प्रकार व्याख्या प्रस्तुत की है । अतः इनके उदाहरणों को प्रस्तुत करने के अनन्तर उन्होंने कहा 'एतदेवोपजीव्यानन्दवर्द्धनाचायें मोक्तं सुप्तिवचनेत्यादि ।” यहाँ स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि उनका निर्देश श्रानन्द की, 'सुप्तिवचनसम्बन्धैस्तथा कारकशक्तिभिः । ( ध्वन्या० ३।१६ ) आदि कारिका की ओर है । परन्तु यदि उन्हें 'वकोक्तिजीवित' में भी सुवादिवकता' इत्यादि किसी कारिका की ओर निर्देश करना होता तो वहाँ भी कहते - अन्यैरपि सुबादिवक्रतेत्यादि ।' किन्तु ऐसा न कहकर उन्होंने जो केवल सुवादिवक्रता कहा, उसका आशय सुस्पष्ट है कि वहाँ उनका संकेत किसी कारिका की ओर नहीं बल्कि विवेचन मात्र की ओर है । जिसे श्रानन्द ने सुवादिध्वनि कहा है उसे ही दूसरों ने सुबादि 1 १. द्रष्टव्य Introduction to V. J. ( pp. XIV - XV ) यद्यपि डॉक्टर साहब स्वयं कुछ दबी जबान से कुन्तक की ऊपर उद्धृत 'नामैव खीति पेशलम्' कारिका तथा उदाहरण 'तटी तारं' और उसकी व्याख्या के सम्बन्ध में V. J. पृ० ११४ पर पाद टिप्पणी में ऊपर उद्धृत अभिनव गुप्त की 'तटी तारं ताम्यति' आदि व्याख्या को उद्धृत कर कहते हैं - 'It is possible that this is a reminiscence of Kuntaka's Karika and its illustation.' २. द्रष्टव्य Some Concepts पृ० १३५ और Sr. Pra. p. 117. ३. द्रष्टव्य H. S. P. (p. 236 ). Y. 'But nowhere in the Vakroktijïvita do we find any Kārikā with the words सुबादिवक्रता', Some Aspect. ?
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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