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________________ प्रथमोन्मेषः तथा लक्षितम् । कीदृश्या - उभयरूपयापि स्वल्पया मनामात्रया नातिनिबन्धनिर्मितया । तदयमत्रार्थः सन्निवेशमहिमा लावण्याख्यो गुणः कथ्यते । यथा शब्दार्थसौकुमार्यसुभगः ११७ बन्ध अर्थात् वाक्य की विशेष संघटना, उसका सौंदर्य अर्थात् रमणीयता लावण्य कही जाती है अर्थात् " लावण्य नामक गुण" के द्वारा उसका कथन किया जाता है । कैसा (बन्ध सौन्दर्य ) - वर्णों अर्थात् अक्षरों का विन्यास अर्थात् विचित्र संघटना उसकी विच्छित्ति अर्थात् शोभा विदग्धतापूर्ण भङ्गिमा इसके द्वारा लक्षित - सुबन्त तथा तिङत पदों का सन्धान अर्थात् सम्यक् योजना उसकी सम्पत्ति अर्थात् शोभा उससे लक्षित अर्थात् संयुक्त ( बन्धसौंदर्य ) | कैसी ( सम्पत्ति ) के द्वारा - उभयरूप सम्पत्ति के द्वारा ( अर्थात् ( १ ) वर्णों के विचित्रन्यास से जन्य शोभा ( २ ) तथा उससे युक्त पदयोजना की शोभा इन दोनों से जो ) स्वल्प अर्थात् अत्यन्त थोड़ी एवं बिना अधिक प्रयास के निर्मित की हुई ( अर्थात् स्वाभाविक रूप से उत्पन्न शोभा के द्वारा ) । इसका यहाँ यह अर्थ हुआ कि - शब्द और अर्थ की सुकुमारता से रमणीय संघटना की शोभा लावण्य नामक गुण कही जाती है । जैसे स्नानाद्रमुक्तेष्वनुधूपवासं विन्यस्तसायन्तन मल्लिकेषु । कामो वसन्तात्ययमन्दवीर्यः केशेषु लेभे बलमङ्गनानाम् ॥ ८५ ॥ नहाने के कारण गीले हो जाने से खुले एवं धूप से सुगन्धित किये जाने के अनन्तर सायंकाल गूंथे गये वेला के पुष्पों से युक्त सुन्दरियों के केशकलाप में, वसन्तऋतु रूप अपने सुहृद् का विनाश हो जाने से ( अर्थात् वसन्त की समाप्ति पर ) मन्द हो गये पराक्रम वाले कामदेव ने शक्ति प्राप्त किया ॥८५॥ अत्र सनिवेश सौन्दर्य महिमा सहृदयसंवेधो न व्यपदेष्टुं पार्यते । यथा वा चकार बाणैरसुराङ्गनानां गण्डस्थली : प्रोषित पत्रलेखाः ॥ ८६ ॥ यहाँ पर संघटना के सौंन्दर्य की शोभा का कथन नहीं किया जा सकता क्योंकि वह केवल सहृदय हृदय के द्वारा अनुभवगम्य है । ( अर्थात् इस श्लोक में जो वर्ण विन्यास की विच्छित्ति है अर्थात् सुकुमार वर्णों का मनोहारी विन्यास है उसकी शोभा एवम् पदों की जो मनोहारी योजना है, उसकी शोभा दोनों का केवल अनुभव किया जा सकता है शब्दों द्वारा नहीं व्यक्त किया जा सकता । अथबा जैसे ( इसी का दूसरा उदाहरण ) - ( रघुवंश महाकाव्य के इन्दुमती - स्वयंवर के प्रकरण में इन्दुमती से राजा ककुत्स्थ का परिचय देती हुई कहती है कि ये वे ही राजा ककुत्स्थ हैं
SR No.009709
Book TitleVakrokti Jivitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhyshyam Mishr
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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