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________________ स्तारण-वाणी [ 55 जिन दिष्ट उत्त सुद्धं, जिनयति कम्मान तिविह जोएन। न्यानं अन्मोय ममले, ममल सरूवं च मुक्ति गमनं च // 32 // जैसा जिन ने देखा, जैसा बचन-अमिय परसाया / वैसे ही शुद्धात्म तस्त्र का, मैंने रूप दिखाया // त्रिविध योग से सतत करेंगे, जो आता आराधन / कर्म जीत, वे ज्ञानानन्द हो; पावेंगे शिव पावन // मैंने जो यह कथन किया है, इसमें मेरा कुछ भी नहीं है, श्री जिनवाणी के चरण कमलों का अनुसरण करके ही मैंने सब कुछ कहा है। मेरा विश्वास है कि मन, वचन और काय के नियोग से जो आत्मा का पाराधन करेंगे वे अवश्य ही कर्मों के बंध काटकर एक दिन मुक्ति श्री के दर्शन कर अपने जीवन और ज्ञान चक्षुओं को सफल करेंगे। इतना ही नहीं, समय पाकर उसके स्वामी बनकर शाश्वत सुख के भोगी बनेंगे।
SR No.009702
Book TitleTaranvani Samyakvichar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami
PublisherTaranswami
Publication Year
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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