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________________ श्री जम्बूस्वामी चरित्र ९१ “यदि ऐसा है तो श्रेष्ठ ही है। क्षत्रिय धर्म की मर्यादा सदा बनी रहेगी। जिस कार्य से कन्या का लाभ हो और क्षत्रियों का यश हो, उस काम को साधने से ही हम अपना जन्म सफल मानते हैं । हे धीर-वीर वत्स ! तुम परंपरा फल के ज्ञाता हो, इसलिए शीघ्र वहाँ जाओ। इस शुभ कार्य में विलंब करना योग्य नहीं है। और हमें भी हमारे करने योग्य कार्य की आज्ञा करो। " जम्बूकुमार का युद्धार्थ गमन बलवानों का बल हर कार्य में स्फुरायमान होता है। राजा की आज्ञा पाकर जम्बूकुमार आनंद सहित निर्भय हो अकेले ही केरल देश जाने को तैयार हो गये । कुमार साहसी एवं अपूर्व बल के धनी तो थे ही, उन्होंने तत्काल व्योमगति विद्याधर से कहा विद्याधर ! आप जहाँ रत्नचूल है, वहाँ शीघ्र ही मुझे ले चलो । " "हे था, विद्याधर को अभी तक कुमार पर विश्वास नहीं आया वह कुमार के आश्चर्यकारी वचन सुनकर उपहास-सा करता हुआ कहने लगा " हे बालक ! तुम चलकर क्या करोगे ? मृग का बच्चा तब तक ही चपलता करता है, जब तक केशरी सिंह गर्जना करता हुआ सामने नहीं आता। यह शरीर तब तक ही सुन्दर दिखता है, जब तक यमराज के भयानक दांत नहीं लगते। यह जंगल तब तक ही हरे-भरे तृणादि से शोभता है, जब तक प्रचंड अग्नि की ज्वाला वन में नहीं फैलती । उसी तरह हे बालक ! तेरा बल-प्रताप तब तक ही है, जब तक रत्नचूल के बाणों से वह जर्जरित न किया जावे।" विद्याधर के ऐसे क्रोध उत्पादक वचन सुनकर यद्यपि जम्बूकुमार के अन्दर क्रोध उमड़ आया, मगर उन्होंने शांतभाव से विद्याधर से कहा "हे आकाशगामी विद्याधर ! आपका कहना ठीक नहीं है, आप अभी देखेंगे कि बालक क्या करेगा। ज्ञानीजनों की यह सनातन रीति है कि वे पहले अपनी धीरता का परिचय देते हैं, पीछे वीरता का। युद्ध के मैदान में उतरने वाले मुझ जैसे योद्धा का मनोबल तोड़ने में तुम जैसे विद्याधर के अपमानजनित शब्द भी विफल हैं। हे विद्याधर ! जगत में तीन प्रकार के प्राणी हैं उत्तम, मध्यम -
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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