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________________ जैनधर्म की कहानियाँ और जघन्य। उत्तम वे हैं, जो कहते नहीं और करके बताते हैं। मध्यम वे हैं, जो कहते भी हैं और करके भी दिखाते हैं। तथा जघन्य वे हैं, जो कहते तो हैं, परन्तु करते नहीं हैं।" राजा श्रेणिक भी विद्याधर के वचन सुनकर कहने लगे - “हे विद्याधर! तुम्हारा कुमार के संबंध में ऐसा कहना बिलकुल भी उचित नहीं। तुम्हारे विचार अनभिज्ञता पूर्ण हैं। जिस सिंह को भीमकाय हाथी आदि भी नहीं मार सकते, उस सिंह को अकेला अष्टापद मार डालता है। जिस यम ने सर्व जगत को ग्रासीभूत कर लिया, उस यम को अकेले जिनेन्द्र ने जीत लिया है। प्रचंड दावाग्नि को भी मेघ का जल अकेला ही बुझा देता है। मिथ्या अंधकार को सम्यग्ज्ञान की एक किरण ही नष्ट कर देती है। जगत के बहधा प्राणियों को क्रोधाग्नि जला देती है, मगर महात्माओं का क्षमा-जल उसे एक क्षण में शमन कर देता है। सूर्य एक अकेला ही गगनमंडल में उदित होता है। क्या वह सर्व जगत के अंधकार को दूर नहीं कर देता? अनेक श्यालों को एक अकेला सिंह ही परास्त कर देता है। इसी प्रकार जो वायु मेघ को उड़ा देती है, वह ऊँचे सुमेरुपर्वत को नहीं उड़ा सकती है। अत: हे विद्याधर! सुमेरु पर्वत के समान जम्बूकुमार के सामने प्रचंड वायु के समान रत्नचूल भी टिक नहीं पायेगा।" पश्चात् श्रेणिक राजा के वचनों का स्वागत करते हुए विद्याधर ने आदर सहित अनुपम बलधारी जम्बूकुमार को अपने दिव्य विमान में बिठाकर शीघ्र ही आकाश मार्ग में वायु-वेग से चलकर अपने इच्छित स्थान केरल नगर में पहुंचा दिया। वहाँ पहुँचते ही सेना का कोलाहल सुन कुमार ने विद्याधर से कोलाहल का कारण पूछा। तब विद्याधर ने कहा - "हे कुमार! यहाँ आपके शत्रु रत्नचूल की सेना डेरा डालकर पड़ी हुई है। यह कोलाहल उसी का हो रहा है। रत्नचूल के यहाँ आने के कारण से तो आप परिचित हैं ही। हे कुमार! इसके भय से राजा मृगांक तो किले के भीतर बैठा है। अनेक विद्याधर इस रत्नचूल के सेवक हैं। वह पहले अनेक
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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