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________________ ९० जैनधर्म की कहानियाँ अशक्य है तो फिर वीर-कार्य करने की बात ही कहाँ रही? दूसरी बात भूमिगोचरी, विद्याधरों का सामना कैसे कर सकते हो? यह कार्य तो जैसे बालक पानी में हाथ डालकर चन्द्रमा पकड़ना चाहता है - ऐसा हास्यास्पद है। जैसे पंगु सुमेरुपर्वत की चूलिका स्पर्श करना चाहे अथवा बिना जहाज के समुद्र पार करना चाहे, वैसे यह आपका अशक्य मनोरथ है कि हम रत्नचूल को जीत लेंगे। जैसे कोई बौना मनुष्य बाहु रहित हो और ऊँचे वृक्ष के फल को खाना चाहे तो वह हास्य का भाजन होगा, वैसे ही आप का उद्यम है। जैसे कौआ उड़कर लोक के अंत को नहीं पा सकता, वैसे हे बालक! रत्नचूल का जीतना अति ही कठिन है।" इस तरह उस विद्याधर ने अनेक प्रकार से रचिल के बल का प्रताप बताया, लेकिन सभी जन सुनते रहे, कोई बोला ही नहीं, परन्तु उस यशस्वी शूरवीर कुमार से न रहा गया। वे वादी-प्रतिवादी के समान अनेक तर्क-युक्तियों से उत्तर देते हुए बोले - “हे विद्याधर! किसी को जाने बिना ऐसे वचन कहना तुम्हें योग्य नहीं है। ज्ञान बिना किसी को बलहीन कौन जान सकता है?" जम्बूकुमार के वचन सुन व्योमगति विद्याधर निरुत्तर रह गया, मौनपूर्वक कुमार का पराक्रम देखने को ठहर गया। राजा श्रेणिक अत्यंत संकोच में पड़ गए, उनसे कुछ कहते न बना, क्योंकि वे कुमार को युद्धक्षेत्र में भेजने के लिए सहमत नहीं थे। ___पराक्रमी जम्बूकुमार राजा को संकोच में पड़ा जान गंभीर वाणी से शांतभाव एवं ऊँचे स्वर में कहने लगे - "हे स्वामी! यह कौन-सा बड़ा कार्य है? यह तो आपके प्रसाद से ल. मात्र में ही सिद्ध हो सकता है। सूर्य की बात तो दूर रहो, लेकिन उसकी एक किरण मात्र से अंधकार का अभाव हो जाता है। मेरे समान बालक भी उस काम को क्षणमात्र में सिद्ध कर सकता है, तब फिर आपकी बात का क्या कहना? जिसके पास चारों प्रकार की सेनायें उपलब्ध हैं।" जैसे सम्यग्दृष्टि आत्मतत्व की बात सुनते ही आनंदित हो जाता है, वैसे ही श्रेणिक राजा जम्बूकुमार के वचन सुन आनंदित हो उठे। वे कुमार के वचनों पर विश्वास करते हुए कहने लगे .
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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