SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जम्बूस्वामी चरित्र ७५ मुखरित हुआ था कि वह देव आज से सातवें दिन इस पृथ्वीतल पर अवतरित होगा, अतः हे गुरुवर! यह पुण्यवान किसकी कुक्षी को पावन करेगा? इसके आगमन से कौन-सी वसुधा सनाथ बनेगी ?" श्री गौतमस्वामी बोले - “हे महाप्रज्ञ! इसी राजगृह नगर में अनेक प्रकार की धन-सम्पदा से सम्पन्न, सद्धर्म का उपासक, सरलचित्त, वात्सल्यस्वभावी एक अर्हदास श्रेष्ठी रहता है। उसकी जिनमती नाम की रूपवान और धर्मवान पत्नी है। यह भव्यात्मा उसके पवित्र गर्भ को पावन करके इस वसुंधरा पर अवतरित होगा। ये पूर्व के दो भवों से ही आत्मा के प्रचुर स्वसंवेदन का सुधापान करते आये हैं और आज भी सम्यग्दर्शन रूपी रत्न से सुशोभित है। यह चरम शरीरी भव्य आत्मा इसी भव में अपनी साधना को पूर्ण कर, जगत को धर्ममार्ग दिखा कर मोक्षलक्ष्मी का स्वामी होगा।" जिस समय श्री गौतमस्वामी के मुखारविंद से इस भव्योत्तम के जीवन-चरित्र के संबंध में उपदेश हो रहा था, उसी समय वहाँ कोई यक्ष बैठा हुआ था। वह जम्बूस्वामी संबंधी बात सुन आनंदविभोर हो नृत्य करते हुए खूब जयगान करने लगा - "हे स्वामी! हे केवलज्ञानी! हे नाथ! आपकी जय हो, जय हो! आपके प्रसाद से मैं कृतार्थ हो गया। मेरा भाग्य जाग उठा। उन माता-पिता को धन्य है, उस नगर-पुर को धन्य है, जहाँ अंतिम केवली का जीव आयेगा। उस कुल को भी धन्य है, वह घर भी पवित्र है, जहाँ सदा धर्म का प्रवाह बहेगा।" वह यक्ष अपने आसन पर खड़ा-खड़ा बार-बार हर्ष से नृत्य कर रहा था, उसे हर्ष सहित नृत्य करते देख राजा श्रेणिक एवं श्रोतागण उसका रहस्य नहीं जान पाये; इसलिए राजा श्रेणिक ने पुन: विनयपूर्वक प्रश्न पूछा - "हे गुणनिधि गुरुवर! यह कौन व्यक्ति है? यह इतना हर्षित होकर नृत्य क्यों कर रहा है? इसका रहस्य जानने की मेरी तीव्र भावना है।"
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy