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________________ श्री जम्बूस्वामी चरित्र श्रेणिक राजा उनका वृत्तांत सुन प्रमुदित हुए। धर्म के लोभियों को धर्मगुरु का समागम मिलते ही वे अपने हृदय में उठने वाले सम्पूर्ण प्रश्नों का समाधान कर लेना चाहते हैं। राजा पुन: हाथ जोड़ पूछने लगे - “हे गुरुवर! मेरी जिज्ञासा अब यह जानने की है कि विद्युच्चर चोर ने जिनधर्म किसतरह पाया ? कृपया इसका भी समाधान कीजिए।" तब श्री महावीर प्रभु के दयारूपी मेघ-जल से पूर्ण समुद्र के समान गंभीर एवं गुणों के धारक श्री गौतम स्वामी ने विद्युच्चर चोर का धर्म में परिवर्तन संबंधी वर्णन इसप्रकार किया - विधुच्चर का आमूल-चूल परिवर्तन ___ इसी मगध देश में हस्तिनापुर नाम का महानगर है, जो स्वर्गपुरी समान है। वहाँ का राजा संवर एवं उसकी प्रियवादिनी श्रीषेणा नाम की रानी थी। उनका विद्युच्चर नाम का पुत्र था। वह बहुत विद्वान था। जैसे-जैसे वह कुमार अवस्था को प्राप्त होता गया, वैसे-वैसे उसने बुद्धि की तीक्ष्णता के कारण अस्त्र, शस्त्र आदि अनेक विद्याएँ शीघ्र ही सीख लीं। एक दिन उसको पापोदय से खोटी बुद्धि उत्पन्न हुई। वह सोचने लगा • “मैंने सब कलायें सीखी, परंतु चौर्यकला नहीं सीखी। उसका भी मुझे अभ्यास अवश्य करना चाहिए" - ऐसा विचार कर उसने एक रात्रि में अपने ही पिता के महल में धीरे-धीरे चोर की तरह जाकर बहुमूल्य रत्न चुराये। वे रत्न अति ही प्रकाशमान थे। जब वह रत्न चुराकर लौट रहा था, तब किसी व्यक्ति ने उसे देख लिया। सुबह होते ही उसने राजा को कुमार के द्वारा की गई चोरी का वृत्तांत कह दिया। चोरी की बात सुनते ही राजा ने कर्मचारियों को आज्ञा दी कि शीघ्र ही कुमार को वहाँ लाया जाय। कर्मचारियों के कहने पर कुमार शीघ्र ही आकर वीर सुभट के समान पिता के समक्ष खड़ा हो गया। राजा ने उसे अपने मृदु वचनों से समझाया - "बेटे! यह चोरी तूने कब से सीख ली? और चोरी तूने क्यों की? इस राज्य में समस्त मनवांछित सामग्री उपलब्ध है। उनका भोग-उपभोग तुम अपनी रानियों सहित खूब करो। तुम्हें कोई रोक-टोक तो है नहीं
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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