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________________ श्री जम्बूस्वामी चरित्र विचार करने के बाद राजा ने अंजुली जोड़कर पूछा - "हे गुरुवर! कुछ समय पूर्व ही मैंने शास्त्र में पढ़ा था कि देवों की मृत्यु के छह माह पूर्व उनकी माला मुरझा जाती है, शरीर कांतिहीन हो जाता है, कल्पवृक्षों की ज्योति मंद हो जाती है; परन्तु हे नाथ! इस देव के तो ये कुछ चिह्न दिखाई ही नहीं देते। इसका क्या कारण है?" श्रेणिक राजा के अन्दर उत्पन्न हए संशयरूपी अंधकार को नष्ट करनेवाली सहज ही श्री वीर प्रभु की दिव्यध्वनि खिरी - “हे भव्य ! इस देव का वृत्तांत जगत को आश्चर्यकारी एवं वैराग्योत्पादक है। यह देव इसके बाद मनुष्यपर्याय को धारण करके केवलज्ञान लेकर अंतिम केवली बनकर मुक्त दशा को प्राप्त करेगा।" श्रेणिक - “हे प्रभो! अद्भुत दैदीप्यमान तेज के धारी इस पवित्रात्मा देव की पूर्व भवों की साधना-आराधना का वृत्तांत सुनने की मुझे जिज्ञासा उत्पन्न हुई है। उसे बताकर हम पर उपकार कीजिए।" तब वीरप्रभु की दिव्यध्वनि खिरी - भावदेव-भवदेव ब्राह्मण की कथा धन-धान्य एवं सुवर्णादि से पूर्ण इस मगधदेश में पूर्वकाल में एक वर्धमान नाम का नगर था, जो वन, उपवन, कोट एवं खाइयों से युक्त और अत्यन्त शोभनीय था। उसी नगर में वेदों के ज्ञाता अनेक ब्राह्मण लोग रहते थे, जो पुण्य-प्राप्ति हेतु यज्ञ में पशु आदि की बलि चढ़ाते थे। उन्हीं में एक आर्यवसु नाम का ब्राह्मण भी था, वह भी धर्म-कर्म में प्रवीण था। उसकी सोमशर्मा नाम की पत्नी थी, जो सीता के समान सुशील एवं पतिव्रता थी। उसके भावदेव और भवदेव नाम के दो पुत्र थे, जो चन्द्र-सूर्य के समान शोभते थे। जाति से ब्राह्मण होने के कारण उन्होंने वेद, शास्त्र, व्याकरण, वैद्यक, तर्क, छन्द, ज्योतिष, संगीत, काव्य-अलंकार आदि विद्याओं में कुशलता प्राप्त कर ली थी।। ___दोनों ही भाई ज्ञान-विज्ञान एवं वाद-विवाद में अति प्रवीण थे और जैसे पुण्य के साथ इन्द्रिय सुख का प्रेम होता है, वैसे ही
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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