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________________ जैनधर्म की कहानियाँ - इन तत्त्वों का भाव सहित श्रद्धान करना ही सम्यग्दर्शन है। कहा भी है - । तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् । जो जीव इसप्रकार के श्रद्धान- ज्ञान सहित व्रत-तप अर्थात् निजस्वरूप में विश्रांतिरूप तपादि करता है, वही सम्यक्चारित्र है । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र इन तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है और यही धर्म है जो कि मोह-क्षोभ - विहीन निज आत्मा का परिणाम है। इसी मोक्षमार्ग पर चलकर अनंत जीवों ने मोक्ष प्राप्त किया है। तीनकाल और तीनलोक में यही एकमात्र उपाय है । " ३२ पड़ा। इस प्रकार श्री गौतमस्वामी द्वारा तत्त्वों का एवं मोक्षमार्ग आदि धर्म का स्वरूप समझकर श्रेणिक राजा अति प्रसन्न हुए। इतने में ही आकाश से अद्भुत तेजयुक्त कोई पदार्थ नीचे उतरता हुआ दिखाई मानो सूर्यबिम्ब ही अपना दूसरा वह ऐसा चमक रहा था, रूप बनाकर पृथ्वीतल पर श्री वीतराग प्रभु के दर्शन के लिये आ रहा हो। सभी उस तेज को देख तो रहे हैं, मगर कुछ समझ नहीं पा रहे हैं, इसलिए उसी के संबंध में सभी जन आपस में एक-दूसरे से पूछने लगे "ये क्या है ? ये क्या है ?" इसीप्रकार का प्रश्न श्रेणिक राजा के अन्दर भी उत्पन्न होने से वे अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु हाथ जोड़कर विनयसहित श्री गौतमस्वामी गुरुवर से पूछने लगे " हे गुरुवर ! यह तेज किस चीज का है, जो आकाश मार्ग से गमन करता हुआ पृथ्वीतल पर आ रहा है ? इसके अकस्मात् आने का क्या कारण है ?" - बोले गुरुवर "हे राजन् ! यह तेज महाऋद्धिधारी विद्युन्माली नाम के देव का है। धर्म में अनुराग होने से यह अपनी चारों देवियों सहित श्री वीरप्रभु की वंदना के लिए पृथ्वीतल पर चला आ रहा है। यह भव्यात्मा आज से सातवें दिन स्वर्ग से चयकर मानवपर्याय को धारण करेगा तथा इसी मनुष्यपर्याय में अपनी आराधना को पूर्ण करके मोक्षसुख को प्राप्त करेगा । - श्री गौतमस्वामी के मुख से उल तेजमयी देव का स्वरूप जानकर श्रेणिक राजा का हृदय एक ओर तो उस आराधक की बात सुनकर प्रमुदित हो उठा, दूसरी ओर देवों की अंतिम छह माह में क्या स्थिति होती है, उस बात को याद करके स्तब्ध हो गया। कुछ
SR No.009700
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimla Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1995
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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