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________________ आगळना भागो-कांडो-नी जेम आ भागमा पण टीकाकारे पोतानी टीकाने केटलेक स्थळे विस्तारेली छे अने केटलेक स्थळे ढूंकावी छे. एकंदर जोतां कोई पण भाग करतां आ भागमा टीकार्नु परिमाण खास ओर्छ जणाशे नहि. आ भागमां द्वितीय भागनी अपोहचर्चानी जेम कणादमतनी परीक्षाना प्रकरणमा श्रीशांतरक्षितना तत्त्वसंग्रहर्नु पूरेपूरुं प्रतिबिंब छे, जे अमे टिप्पणमा एनी कारिकाओ वगेरे मूकीने जणाव्युं छे. (२) न्यायना कोई पण ग्रंथमां प्रमाण अने प्रमेय ए वे तत्त्वनी चर्चा प्रस्तुत होय छे ज्यारे जैनन्यायना ग्रंथमा ए बे उपरांत त्रीजी नयनी चर्चा पण होय छे. प्रस्तुत प्रकरणमा पहेलामां नयनी, वीजामां ज्ञान वा प्रमाणनी अने त्रीजा कांडमां ज्ञेय के प्रमेयनी चर्चा करेली छे. गौतम के दिमागनी प्रमेयनी चर्चाओनी जेम आ प्रकरणनी प्रमेयनी चर्चामां पदार्थना स्वरूप विषे एटले के संसारमा मुख्य तत्त्वो अमुक अमुक छे. तेना भेदो प्रभेदो अमुक छे अने ते प्रत्येकनुं खरूप अमुक जातनुं छे, एवी खास कंई चची करवामां नी आवी. परंतु पदार्थना स्वरूपने कई गते समजवं जोईए अने पदार्थने कई गते जोडए नो वरावर समजाय एवी समजण वधु वीगती आपवामां आवी छे, अने विचारना जगतमां जीव अने जगन विषे जे जे विरोधी मान्यताओ चाली आवे छे तेनो समन्वय करवानी दृष्टि पण आ प्रकरणमां ग्वाम मूकवामां आवी छे. ____एक अनुभवी कहे छे के दृश्य अने अदृश्य वधु निन्य छ. अने बीजो अनुभत्री कहे छे के ए वधु अनित्य छे. आ मान्यताओ जे वे दृष्टिकोण उपर रहीने स्थिर करवामां आवी छे ते दृष्टिकोण जिज्ञासुओना म्ब्यालमा आवी जाय तो ए वे वच्चनो विरोध तुग्न टळी जाय. ए विगेव टाळनारी सरळ अने समाधायक पद्धति आ ग्रंथमां खाम भष्ट करवामां आवी छ. एक द्रष्टा एम कहे छ के अमुक पदार्थ मने तो लांबो देवाय छे, बीजो कोई एम कहे के मने तो ए ज पदार्थ हूंको देखाय छे अने त्रीजो एम कहे के ए त्रिकोण देवाय छे; त्यारे आ बवाना दृष्टिकोणने समजनागे वैज्ञानिक एम कहे के ए पदार्थ लांबो, हूंको अने त्रिकोण देवाय छे ए बधुं सापेक्ष भावे वरावर छे. कारण के जोनाराओनी निर्दोष दृष्टिओ अने पदार्थ वच्चेनो संबंध जुदी जुदी जातना छे. आ समाधानकारी दृष्टिनुं नाम अनेकांतवाद विभन्यवाद के न्यावाद छे. जैन आगमोमां आ दृष्टिनुं दिगदर्शन तो छ ज पण आ ग्रंथकारे आ प्रकरणमा ए दृष्टिने एक वैज्ञानिकनी रीते समजावेली छे. एटले के जेम कोई वैज्ञानिक कोई तत्त्वर्नु पृथक्करण करीने तेमांना प्रत्येक अंशने स्पष्ट करी वतावे छे तेम आचार्य सिद्धसेन दिवाकरे आ कांडमां अनेकांतवादनी बधी बाजुओने खुल्ली रीते समजावली छे. एम अनेकांतवादनुं शास्त्रीय पृथक्करण आ पुस्तकमां ज पहेलु थयु छे. आ प्रकरणना प्रांत भागमां केटलीक गाथाओ एवी पण छे जे उपरथी आपणे तेना कर्नानी तेना पोताना युगमां व्यापेली मंदताने तोडनारी तेजस्विता अने रुढ विचारधारानी सामे स्थापेला रचनात्मक विचारप्रवाहने पण जोई शकीए छीए. केटलीक वार एवं बने छे के पोताने सत्यद्रष्टा माननारा भलभला मोटा माणसो पण मात्र शब्दस्पर्शी होय छे, जे शब्दम्पर्शथी पोतानुं जीवन अने सामाजिक जीवन छिन्नभिन्न यतुं होय छे. ज्यारे वघी बाजी हाथमाथी जवानो वखत आवे छे त्यारे पण ए शब्दम्पर्श नी मूकातो. आचार्य सिद्धसेनना जमानामां आवु आq होवानुं झांबुं झां दर्शन थाय छे.
SR No.009697
Book TitleSanmatitarka Prakaranam Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size192 MB
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