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________________ संपादकीय निवेदन। सन्मतिना पांचमा भागमां त्रीजु कांड पूरूं आवी गयुं छे. अने ए रीते त्रिकांडी आ आखो ग्रंथ मूळ अने टीका साथे पांच भागोमां पूरो थाय छे. १९८६ नी शरुआतमां ज छपाई गयेलं आखं त्री काण्ड तैयार हतुं एथी मात्र मूळ अने टीकाटिप्पणी पूरतो पांचमो भाग बीजा भागोनी जेम प्रगट करी शकाय तेम तो हतो पण एमां केटलांक आवश्यक परिशिष्टो उमेरवानां होवाथी तेनुं प्रकाशन लंबाववामां आव्युं छे. आ पांचमा भागने अंगे अमारुं निवेदन नीचेना मुद्दा परत्वे छे. १ त्रीजा कांडना मूळ अने टीकार्नु परिमाण. २ मूळनो विषय अने मूळकारनी तेजखिता. ३ टीकाना स्वरूपनी चर्चा अने टीकाकारना समयनुं वातावरण. ४ कांडनां नामो अने ग्रंथना पूर्वमुद्रित नामर्नु परिवर्तन. ५ प्रतिओनो उपयोग अने परिशिष्टोनो परिचय. (१) आ कांडनी मूळ गाथाओ मात्र मूळवाळा लिखित पुस्तकमा ७० छे अने मूळसहित टीकावाळां लिखित पुस्तकोमा एक गाथा ओछी छे-६९ छे. मूळवाळा लिखित पुस्तकमा जे गाथा ७० मी छे ते गाथाने टीकावाळां पुस्तकोमा छेल्ली एटले ६९ मी गणवामां आवी छे. एटले मूळवाळा पुस्तकमा जे गाथा ६९ मी छे ते गाथाने टीकावाळां पुस्तकोमा स्थान आपवामां नथी आव्यु. अमारा मुद्रणमां अमे ए गाथाने पाठांतर तरीके पृ. ७५७ मां नोंधेली छे. सन्मति प्रकरणनी छेल्ली गाथा आशीर्वादात्मक मंगळ सूचवे छे. अने आ वधारानी गाथा नमस्कारात्मक मंगळरूप छे. कहेवाय छे के शास्त्रना आदि, मध्य अने अंतमां मंगळ होवां जोइए, ते प्रमाणे आ प्रकरणमां पण आदि अने अंतमां मंगलात्मक शब्दनो निर्देश मळे छे. ए रीते विचार करीए अने आ वधारानी गाथाने वधारानी न मानीए तो अंते बे मंगळ थई जाय छे जेनो खास कई उपयोग जणातो नथी. तेथी एम कल्पी शकाय छे के कदाच आ नमस्कारात्मक मंगळने सूचवती गाथा वधारानी ज होय अने मूळग्रंथकारनी कृति न होय. आ एक वात. बीजी वात ए छे के टीकाकारे आ प्रकरणनी बधी गाथाओनी व्याख्या करेली छे. जे गाथा सहजमां समजाय एवी छे तेनी पण व्याख्या करवी छोडी नथी. जो आ गाथा मूळनी ज होत तो टीकाकारे पोतानी शैली प्रमाणे जरूर तेनी व्याख्या करी होत. छेवटे काई नहि तो आ गाथा लखीने 'सुगमार्था' के 'स्पष्टार्थी' आq पण लख्यु होत. पण टीकानी कोई प्रतिओमां-जेमांनी केटलीक आजथी ५०० वर्ष जेटली जूनी छे तेमां-एकेमां आ गाथानो उल्लेख ज नथी. आ बन्ने कारणोथी अमारी कल्पना एवी थाय छे के अनेकांतवादना कोई भक्ते आ गाथाद्वारा अनेकांतवादनुं खरुं महत्त्व बतावी अनेकांतवादना आ प्रतिष्ठित प्रकरणमा एने उमेरेली होवी जोईए. बृहट्टिप्पनीकारे आ प्रकरणनी १७० गाथा नोंधेली छे. अने जैनग्रंथावलीमा ए १६८ नोंधायेली छे. पण अमारी सामेनी टीकावाळी बधी प्रतिओमा १६६ थी वधारे गाथाओ क्यांये मळती नथी. तेथी वधारानी गाथानो खुलासो अमे उपर प्रमाणे करीए छीए, अने एथी आ त्रीजा कांडनी ६९ गाथाओ होवानुं प्रमाणित करीए छीए.
SR No.009697
Book TitleSanmatitarka Prakaranam Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size192 MB
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