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________________ १४ तेओ कहे छे के ६३). "कांई शासन उपरना मात्र रागने लीधे कोई सिद्धांतनो ज्ञाता एटले सिद्धांतनो बधी रीते तलस्पर्शी अभ्यासी थई शकतो नथी. तेम ज कोई अमुक अमुक ज दृष्टिकोण उपर रहीने शास्त्रने समजावतो होय ते पण तेनी प्ररूपणामां निश्चित होई शकतो नथी" ( गाथा. “सूत्र अर्थना आधाररूप छे. माटे सूत्रने ज वळगी रहेवामां आवे अने तेना व्यापक अर्थनो विचार न करवामां आवे तो कदी पण अर्थनी प्रतिपत्ति थई शकती नथी. ए अर्थनुं भान तो तेने ज थई शके छे जे दुर्गम एवा नयवादना गहन वनमां प्रवेश करवाने उत्साही होय." ( गा० ६४ ) आवुं छे माटे आचार्यश्री कहे छे के " सूत्रना भणनाराए अर्थसंपादनमां खूब यत्न करवो जोईए. ते न करनारा केटलाक धृष्ट अने अशिक्षित आचार्यो महापुरुषोनी आज्ञानी फजेती करे छे." ( गा० ६५ ) “जेने अज्ञ लोको बहु ज्ञानी समजता होय, जे एवा ज लोकोमां पूजातो होय अने जेनो शिष्य - परिवार कांई ठीक ठीक होय तेवो आचार्य जो अनेकांतना स्वरूपने निश्चितपणे न समजतो होय तो ते आचार्य सिद्धांतनो द्रोही छे." ( गा० ६६ ) आजना क्रांतदर्शी संतनी जेम आचार्य सिद्धसेन आटलेथी न अटकतां वधुमां जगावे छे के:“जेओ पोताना क्रियाकांडमां कुशळ छे अने ए क्रियाकांडने ज प्रधानपणे वळगीने चाले छे तेओ जो पोताना सिद्धांतनुं अने परसमयनुं विशाळ ज्ञान न धरावता होय तो तेओ ए क्रियाकांडना भारनो कशो उद्देश ज समजता नथी. " ( गा० ६७ ) आचार्यश्रीनां आ वचनो उपरथी तेमना समयना तमोमय वातावरणनो ख्याल आववा साथे ते वातावरणने भेदवानुं सामर्थ्य धरावनारुं तेमनुं तेज पण प्रगट थाय छे. (३) टीकाकारश्रीए पोतानी शैली जेवी बीजा बे कांडोमां एकसरखी राखी छे तेवी आमां पण राखी छे. तेमनो उद्देश तो ए लागे छे के मूळ ग्रंथने आश्रीने तेमना पोताना समय सुधी स्थिर थयेलां बघां तत्त्वचिंतनो आ टीकामां गोठवी देवां जे बधां कांडोमां एकसरखी रीते जळवाई रहेलो देखाय छे. आ कांडनी टीकामां एक स्थळे ब्राह्मणत्व विषे ( गाथा ४९ पृष्ठ ६९९ ) चर्चा छे अने एक स्थळे मूर्तिना शृंगार ( भूषा) विषे ( गा० ६५. पृ० ७५४ ) चर्चा छे. ते बन्ने चर्चाओ टीकाकारना समयना वातावरणनो ख्याल आपवाने पूरती छे. जातिवाद विषे जैनोनो अने बौद्धोनो एकसरखो मत ए छे के कोई जाति मात्र जातिने ली मान्य के पूज्य गणाती नथी जो तेमां लायकात न होय तो. आ वस्तु भगवान महावीर पछी जैनोना जीवनमा घणा वखत सुधी टकी रहेली हती, आजे तो ते नथी. तेने लोपावानो प्रसंग ब्राह्मणोना नातिप्रधान बंधारणना सामर्थ्यनी असर सिवाय बीजो कल्पी शकातो नथी, पण ते लोपावानी तारीखनो निर्णय करवो कठण छे. छतां य टीकाकार अभयदेवे आ टीकामां ए जातिवादनी सामे थवाने बौद्धाचार्य शांतरक्षित जेवो ज प्रयास करेलो छे, तेथी कदाच एम कल्पी शकाय छे के एना जमाना सुधी श्वेतांबर जैनोमा ए जातिवादनी असर न होय अथवा टीकाकारे आ वात मात्र चर्चा तरीके ज लखेली होय. बीए के टीकाकारना जमानामां मूर्तिनो शृंगार करवा न करवानी चर्चा वधु पडती चालती हशे जेथी एमणे आ टीकामां पोतानो शृंगार करवानो पक्ष स्थापित करेलो जणाय छे. वस्तुतत्त्ववि - चारना ग्रंथोमां आवी चर्चाओने अवकाश न होवो जोईए छतां ते ते समयनुं सांप्रदायिक वातावरण ज आवी चर्चाओने छेडी दे छे.
SR No.009697
Book TitleSanmatitarka Prakaranam Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size192 MB
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