SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १५६ ] मूर्तियों पर। [2532] • ॥ॐ ॥ जालवृद्धान्वये तुंगे। कुले च ससिसंझके । प्रद्युम्नाचार्य । सकेन वृद्धसंनेद कारित [2533] + (१) ॥ संवत् १९३७ शाके १४ए३ प्रवर्त्तमाने मिती माघ सुदि १३ गुरौ श्रीपार्श्व. जिन विंबं प्र. (५) तिष्ठितं श्रीमत्वृहत्खरतरगन्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान जट्टारक श्रीजिनमुक्ति सू. (३) रिनिः ॥ महाराजाधिराज महारावलजी श्रीवैरिसावजीविजयरा (४) ज्ये श्रीजेसलमेर कारितं च संघवी बाफणा हिमतराम न(५) बमल सागरमल उमेदमस मूलचंद सगनमलादिचिः ॥ खश्रेयोर्थ ॥ (2534] (१) सं० १९२० शाके १७९३ मिती माघ सुदि १३ गुरौ श्रीगजिनबिं प्र० । (२) श्रोजिनमुक्तिसूरिनिः ॥ महाराजाधिराज महारावलजी श्रीवैरिसालजी * यह धातु की मूर्ति बहुत प्राचीन है। सप्तफण सहित पद्मासन की मूर्ति, दोनो तरफ दो खड़ी सवस्त्र कायोत्सर्ग की मूर्ति, नीचे दाहिने तर्फ हस्ती पर पुरुष मूर्सि, यि सिंह पर देवी मूर्ति, गोद में लड़का, नोचे दाहिने तर्फ चार पुरुष मूर्ति, बांये तर्फ धार स्त्री मूर्ति और मध्य में धर्मचक्र है। * यह दाहिने तरफ की श्याम मूर्ति पर का लेख है। र यह पीले पागण को प्रतिमा पर कालेज है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy